परमार वंश का इतिहास । परमार वंश की कुलदेवी
Parmar vansh history in Hindi। Parmar vansh kuldevi in Hindi
राजपूतों के प्रमुख राजवंशों में से परमार या पंवार वंश एक विशिष्ट वंश है। परमार राजपूतों का इतिहास बहुत ही स्वर्णिम रहा है। इन्होंने 8वी शताब्दी से 13वी शताब्दी के मध्य भारत देश के एक विशाल भाग पर शासन किया है।
परमार राजपूतों की उत्पत्ति
परमार राजपूतों की उत्पत्ति के संबंध में इतिहासकारों में अलग-अलग मत है। परमार वंश, क्षत्रिय परंपरा में अग्निवंशी माने जाते हैं। अग्निकुंड से परमारो की उत्पत्ति को राजा मुंज के दरबार कवि पदमगुप्त द्वारा लिखे गए नवसाहसांक चरित द्वारा स्पष्ट किया गया है।
इसके अनुसार आबू पर्वत पर वशिष्ठ ऋषि रहते थे उनकी गाय नंदिनी का विश्वामित्र ने छल से अपहरण कर लिया था।
इस पर वशिष्ठ ऋषि ने क्रोध में आकर अग्नि कुंड में आहुति दी जिससे एक वीर पुरुष उत्पन्न हुआ जो शत्रुओं को पराजित कर गौ माता को वापस ले आए उसी वीर पुरुष के वंशज से बाद में परमार वंश/पंवार वंश की उत्पत्ति हुई।
इसी बात का वर्णन डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा राजस्थान में "परमार चामुंड राज" द्वारा बनाए गए महादेव मंदिर में मिले शिलालेख भी करते हैं।
इन शिलालेखों के अनुसार भी गुरु वशिष्ठ की गाय को ले जाने पर गुरु वशिष्ठ की अग्नि कुंड में आहुति के बाद उत्पन्न हुए दिव्य पुरुष ने ही परमार वंश की स्थापना की थी। इन सभी बातों का उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी किया गया है।
इसके अतिरिक्त भविष्य पुराण के कुछ श्लोकों से भी यह पता चलता है कि सम्राट अशोक के समय में आबू पर्वत पर ब्राह्मणों ने यहां यज्ञ करके चार क्षत्रिय वीर पुरुष उत्पन्न किए थे जो कि परमार, चौहान, चालुक्य तथा प्रतिहार थे।
भविष्य पुराण के अनुसार प्रथम आबू यज्ञ सम्राट अशोक के समय में 215 पूर्व ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व के मध्य हुआ था।
दूसरा यज्ञ छठी शताब्दी में गुरु वशिष्ठ ने किया था इसीलिए विष्णु पुराण के अनुसार प्रथम यज्ञ से ही परमारो की उत्पत्ति मानी जाती है।
सबसे प्राचीन उल्लेख अहमदाबाद के पास स्थित एक गांव के मंदिर के दानपात्र में मिले शिलालेख में मिलता है। इसके अनुसार परमारो की उत्पत्ति राष्ट्रकूटो से मानी जाती है तथा राष्ट्रकूटो की भांति ही परमारो को चंद्रवंशी माना गया है। पंजाब के परमार आज भी स्वयं को चंद्रवंशी मानते हैं।
श्रीमद भागवत गीता, वायु पुराण एवं बंगाल के चंद्रवंशी राजा विजयसेन के शिलालेखों के अनुसार भी परमारो को चंद्रवंशी माना गया है परंतु परमार स्वयं को सूर्यवंशी ही मानते है।
उदयपुर एवं पटना के शिलालेखों में परमारो को वशिष्ठ गौत्रीय सूर्यवंशी क्षत्रिय माना गया है।
परमार वंश द्वारा शासित प्राचीन राज्य
- मालवा
- बागड़ (मेवाड़)
- आबू
- जालौर(राजस्थान)
- किराडू राज्य
परमार वंश द्वारा शासित नवीन राज्य
- दांता (गुजरात)
- पीसांगन(अजमेर)
- मध्यप्रदेश में स्थित देवास और धार क्षेत्र
- टेहरी गढ़वाल और पौडी गढ़वाल
- जगदीशपुर और डमरांव (बिहार)
- राजगढ़ और नरसिंहगढ़ (मध्य प्रदेश)
- छतरपुर राज्य
- अमरकोट (सिंध,पाकिस्तान)
- पारकर राज्य
- जगमेर राज्य
परमार वंश की कुलदेवी
उत्तर भारत के परमारो की कुलदेवी सच्चियाय माता तथा उज्जैन के परमारो की कुल देवी काली देवी है।
सच्चियाय माता मंदिर राजस्थान के प्रमुख शहर जोधपुर से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सच्चियाय माता मंदिर जोधपुर जिले में बना हुआ सबसे विशाल मंदिर है।
इस मंदिर का निर्माण नवी से दसवीं शताब्दी के मध्य उप्पलदेव( उपेंद्र राज) परमार ने करवाया था। यह मंदिर ओसियां नामक जगह पर स्थित है इसलिए इस मंदिर को ओसियां माता मंदिर भी कहा जाता है।
इस ऐतिहासिक प्रसिद्ध मंदिर में भारत से ही नहीं बल्कि दूसरे देशों से भी लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। ओसियां माता मंदिर में स्थित माता जी की मूर्ति महिषासुर मर्दिनी के अवतार में है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता की मूर्ति अपने आप प्रकट हुई थी।
सच्चियाय माता परमार वंश के अतिरिक्त ओसवाल जैन, कुमावत, राजपूत तथा चारण समाज के लिए भी आराध्य देवी है।
सच्चियाय माता मंदिर में 1178 ईस्वी में उत्कीर्ण एक शिलालेख है जिसमें इस प्राचीन मंदिर में क्षेमकरी, शीतला माता सहित अन्य देवियों की मूर्तियां प्रतिष्ठापित किए जाने का पता चलता है।
ओसियां में जैन मंदिर व बाकी अन्य सब हिंदू मंदिर है। सभी मंदिर स्थापत्य कला के सुंदर उदाहरण है। इनमें से सूर्य मंदिर, हरिहर मंदिर, विष्णु मंदिर, शिव मंदिर प्रमुख है।
ओसियां माता मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है परंतु जब सुबह के समय माताजी को चुनरी चढ़ाई जाती है तब दो महिलाओं को गर्भगृह में जाकर पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। सच्चियाय माता मंदिर की प्रथा के अनुसार यहां पर जो प्रसादी चढ़ाई जाती है उसे घर नहीं ले जाया जाता है। प्रसादी का वितरण सिर्फ मंदिर परिसर में ही किया जाता है।
सच्चियाय माता मंदिर कैसे पहुंचे
सच्चियाय माता का मंदिर जोधपुर से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोधपुर से ओसिया के लिए सीधी बसे चलती है। इस प्रकार आप आराम से बस के माध्यम से यहां पहुंच सकते हैं।
इसके अतिरिक्त ओसियां शहर, जोधपुर शहर से रेल मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। आप ट्रेन के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं।
अगर आप ओसियां में माता जी के दर्शन करने के लिए आते हैं तो आप "श्री सच्चियाय माता अंतर्राष्ट्रीय अतिथि गृह" के अंदर मात्र 120 रुपए में एक रात रुक सकते है। इसमें भोजन भी शामिल होता है।
परमार वंश के प्रमुख शासक
परमार वंश में राजा भोज, विक्रमादित्य जैसे वीर पुरुषों ने जन्म लिया है। भृतहरी जैसे संतो ने भी इस वंश में जन्म लेकर इसके गौरव को बढ़ाया है।
परमार वंश के प्रारंभिक शासक राष्ट्रकूटो के सामंत थे। जब धीरे-धीरे राष्ट्रकूटो की शक्ति क्षीण होने लगी तब सीपांक द्वितीय के नेतृत्व में परमार वंश स्वतंत्र हुआ और बाद में सीपांक के पुत्र वाक्पति मुंज (973-995 ईसवी) ने स्वयं को एक शक्तिशाली शासक के रूप में स्थापित किया। वाक्पति मुंज ने अपने राज्य को तो अच्छे से संभाला ही इसके साथ-साथ राजपूताने के बहुत से भाग पर भी अधिकार कर लिया था।
वाक्पति मुंज के बाद उनके महान भतीजे राजा भोज ने परमार वंश में चार चांद लगा दिए। राजा भोज परमार वंश के नवे शासक थे । राजा भोज एक बहुत ही विद्वान, प्रतापी और शक्तिशाली शासक थे। राजा भोज एक सर्वगुण संपन्न शासक थे जिनके दरबार में कई विद्वान रहते थे।
मध्य प्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाने का श्रेय राजा भोज को ही जाता है। राजा भोज एक अच्छी कवि भी थे तथा उनके राज दरबार में देश-विदेश से बड़े बड़े कवि आकर अपनी कला का प्रदर्शन करते थे।
राजा भोज की मृत्यु के बाद परमार वंश को उदयादित्य ने संभाला और आगे बढ़ाया।
परमार वंश की प्रमुख शाखाएं या खांपे
वराह, लोदरवा परमार, बूंटा परमार, चन्ना परमार, मोरी परमार, सुमरा परमार, उमट परमार, बीहल परमार, डोडिया परमार, सोढा परमार, नबा, देवा, बजरंग, उदा, महराण, सादुल, अखैराज, जैतमल, सूरा, मधा, धोधा, तेजमालोट, करमिया, विजैराण, नरसिंह, सुरताण, नरपाल,गंगदास, भोजराज, आसरवा, जोधा, भायल, भाभा, हुण, सावंत, बारड, सुजान, कुंतल, बलिला, गुंगा, गहलड़ा, सिंधल, नांगल।
- परमार वंश का प्रारंभ 9वी शताब्दी से माना जाता है।
- परमार वंश के संस्थापक उपेन्द्रराज थे।
- परमार वंश की प्राचीन राजधानी उज्जैन थी बाद में राजधानी परिवर्तित कर धार नगर कर दी गई थी जो मध्य प्रदेश में स्थित है।
- परमार वंश का शासनकाल 800 से 1327 ईस्वी तक था।
- परमार वंश के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज थे।
- प्रबंधचिंतामणि के लेखक परमार वंश से संबंध रखने वाले मेरुतुंग थे।
- सीता नाम की प्रसिद्ध कवित्री उपेंद्रराज के दरबार में ही थी।
Category:
RAJPUT HISTORY -EVENTS /FACTS /PERSONS
Rajput Raja Bhoj was a legend warrior
ReplyDeleteRajput Raja Bhoj was a legend warrior
ReplyDeleteRajput Raja Bhoj was a legend warrior
ReplyDeleteबहुत बढ़िया इतिहास परमार राजपूत क्षत्रिय इतिहास की जानकारी,,, नेतसिह सोढा राजपूत
ReplyDeleteVery Nice
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