महाराणा प्रताप से जुड़े अनजाने स्थान । places related to maharana pratap in Hindi

महाराणा प्रताप से जुड़े अनजाने स्थान । places related to maharana pratap in Hindi

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Unknown places related to maharana pratap

महाराणा प्रताप से जुड़े ऐतिहासिक स्थान(स्थल) । Unknown historical places related to Maharana Pratap in Hindi


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मायरा की गुफा

मायरा गुफा उदयपुर से लगभग 30 किमी. की दूरी पर गोगुन्दा के समीप स्थित है। यहां से ऐतिहासिक हल्दीघाटी युद्ध क्षेत्र मात्र 9 किमी. की दूरी पर है। मायरा की गुफा में प्रवेश के 3 अलग अलग मार्ग बने हुए हैं। अगर आप इस गुफा को बाहर से देखते है तो लगता है जैसे अन्दर कोई भी रास्ता नहीं है, पर जैसे-जैसे आप इस गुफा के अन्दर जाते हैं रास्ता अपने निकलता जाता है।


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गुफा में माँ हिंगलाज का अतिप्राचीन मंदिर है जो महाराणा प्रताप के समय के पहले से ही अस्तित्व में है। यही पर वो स्थल भी है जहां महाराणा प्रताप के स्वामीभक्त अश्व चेतक को बांधा जाता था। यहां आप वह रसोईघर भी देख सकते हैं जहां महाराणा प्रताप के लिए भोजन तैयार किया जाता था।

Mayra ki gufa hinglaj mata Mandir

इस गुफा की विशेषता यह है कि इस पहाड़ी की चोटी से 12 से 14 किमी. दूर खड़ा व्यक्ति भी आसानी से दिखाई दे जाता है, पर 10-12 कदम दूर खड़ा व्यक्ति भी इस गुफा को नहीं देख पाता है। इसी विशेषता के कारण संभवतः महाराणा प्रताप के द्वारा इस गुफा का चयन किया गया होगा।

यह स्थान महाराणा प्रताप का शस्त्रागार भी था। मुगल सेना गोगुन्दा पर 5-6 बार अपना कब्ज़ा करने में सफल रही,परंतु जब भी मुगलों ने गोगुंदा पर अधिकार किया उसके तुरंत बाद महाराणा प्रताप ने प्रचंड शक्ति से आक्रमण करके फिर से गोगुंदा पर अधिकार प्राप्त कर लिया। 

मुगल सेना कभी भी गोगुन्दा के निकट स्थित इस गुफा तक नहीं पहुंच सकी। अकबर की सेना के साथ संघर्ष के दिनों में कई बार महाराणा प्रताप ने इसे अपना निवास स्थान बनाया था।

कुंभलगढ़ दुर्ग

कुंभलगढ़ दुर्ग के बादल महल में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। महाराणा प्रताप द्वारा इस दुर्ग में 5 युद्ध लड़े गए जिनमें से एक को छोड़कर महाराणा प्रताप ने सभी युद्धों को बड़ी आसानी से जीता था। महाराणा प्रताप ने यहां मुगल सेना के सेनापति अब्दुल्ला खान और हुसैन कूली खान को पराजित किया था।

मचीन्द

यह स्थल कुम्भलगढ़ और गोगुन्दा से 19-22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर महाराणा कुम्भा के द्वारा एक पहाड़ी दुर्ग का निर्माण करवाया गया था। यहां एक कुआं तथा एक गुफा भी है। यहां आप पहाड़ी की चोटी से 16-22 किलोमीटर दूर तक का विहंगम दृश्य देख सकते है।

मचीन्द गांव में एक लम्बी गुफा है, जिसका प्रयोग महाराणा प्रताप मुगल सेना से बचने के लिए तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए करते थे।

मचीन्द गांव को महाराणा प्रताप के पुत्र कुंवर अमरसिंह का जन्म स्थान माना जाता है।

रोहेड़ा व आहोर के महल

राजस्थान के रणकपुर और ढोलाण के बीच में रोहेड़ा गांव में महाराणा प्रताप का महल बना हुआ हैं। मेवाड़ के महाराणा जिन भी निवास स्थान पर रहते थे वही महल हो जाता था, अन्यथा ये निवास स्थान बहुत ही साधारण तरीके से बनाए गए थे।

महाराणा प्रताप ने मोगार क्षेत्र के आहोर गांव में भी इसी तरह के छोटे घरों(महलों) का निर्माण करवाया था।

जावर

जावर उदयपुर-ऋषभदेव मार्ग पर स्थित हैं। यहां चांदी धातु की बहुत सी खदानों से चांदी के निष्कर्षण के बाद यहां एक प्राकृतिक रूप से बड़ी गुफा बन गई थी, जो कि जावरमाला की गुफा के नाम से प्रसिद्ध है।

यहां महाराणा प्रताप कुछ समय के लिए रुके थे। अंदर प्रवेश करने के लिए सीढ़ियों का प्रयोग करना पड़ता है। इस ऐतिहासिक स्थल पर महाराणा प्रताप व अकबर की सैनिक टुकड़ियों में कई बार जबरदस्त मुठभेड़ और भिडंत हुई थी।

मुगलों ने जब यहां निगरानी करने के लिए मुगल थाना स्थापित किया था, तब महाराणा प्रताप ने स्वयं अपने नेतृत्व में आक्रमण करके इस मुगल थाने को हटवाया था।

राणा गांव

राणा गांव गोगुन्दा के दक्षिण में 2-3 किमी. की दूरी पर पठारी मैदान में स्थित है। इस गांव के दक्षिण में थोलिया पहाड़ की तलहटी में कुछ पुराने खंडहर हैं, जिन्हें राणा महल के नाम से जाना जाता है। इन खंडहरों के उत्तर दिशा में माल नाम का मैदान है।

यहां थोलिया नाम का बहुत घना जंगल है, जहां जंगली जानवरों की अधिकता है। इस गांव का नाम महाराणा प्रताप के नाम से ही जुड़ा है क्योंकि महाराणा प्रताप ने कुछ समय यहां के महलों में बिताया था।

चोर बावड़ी गांव

यह गांव गोगुन्दा और उदयपुर के बीच स्थित है। महाराणा प्रताप ने इस गांव में भी कुछ समय बिताया था। यहां रहते हुए महाराणा प्रताप को एक बावड़ी की जरूरत लगी तो उन्होंने यहां बावड़ी का निर्माण करवाया था। बाद में इस बावड़ी को दासियों को समर्पित कर दिया गया तथा इसका नाम “दासियों की बावड़ी” रखा गया।

इस गांव को जसवन्त सिंह देवड़ा ने बनवाया था। ये  सिरोही से मेवाड़ महाराणा प्रताप का साथ देने के लिए आए थे।

बदराणा

यह गांव कमलनाथ-आवरगढ़ से लगभग 10 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस गांव का नाम हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले झाला मान, जिन्हें झाला बींदा भी कहा जाता है, को समर्पित करके उनकी याद में रखा था। इस गांव में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने प्रसिद्ध हरिहर मन्दिर का भी निर्माण करवाया था। बाद में महाराणा राजसिंह ने जीर्ण हो चुके इस मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य करवाया था।

उभयेश्वर महादेव मन्दिर

उदयपुर से 16 किलोमीटर पश्चिम में उभयेश्वर नाम की जगह है, जहां चारों ओर घना जंगल है। यहां पर शंकर जी का मंदिर है और इस मंदिर में दर्शन करने के लिए महाराणा प्रताप आते रहते थे। मुगलों ने इस मंदिर पर आक्रमण करके मंदिर की मूर्ति को खंडित कर दिया था। इस मंदिर के पास ही पानी का एक कुंड भी बना हुआ है।

गोगुन्दा

गोगुन्दा में महाराणा प्रताप ने कुछ वर्षों तक निवास किया। यहां जितनी बार मुगल सेना ने अधिकार किया उसके बाद उतनी ही बार प्रचंड शक्ति के साथ आक्रमण करके महाराणा प्रताप ने शाही सेना को शिकस्त दी। इसी जगह पर महाराणा उदयसिंह का स्वर्गवास हुआ था।

यहां पर महादेव जी की बावड़ी है जिसके किनारे पर एक छतरी में महाराणा प्रताप का राजतिलक किया गया था। अगर आप यहां आते हैं तो शायद आप महाराणा प्रताप को अनुभव कर सकते है। गोगुन्दा में उस समय में महाराणा प्रताप ने कई सुंदर उद्यानों का निर्माण करवाया था, जिनकी खूबसूरती की प्रशंसा कई इतिहासकारों ने भी की है।

गोगुंदा, महाराणा प्रताप के शासन की शुरुआती राजधानी रही थी।

मनकियावास

राजपूत कुलभूषण महाराणा प्रताप ने दिवेर युद्ध की पूरी रणनीति मनकियावास के वनों में ही बनाई थी।
यहां एक गुफा भी है जो कि बरगद के पेड़ के नीचे हैं इसी जगह महाराणा प्रताप अपने गुप्तचरों से गुप्त सूचनाएं एकत्रित करते थे।

चावंड - 1576 के हल्दीघाटी युद्ध के बाद मेवाड़(महाराणा प्रताप) की राजधानी

Chavand - capital of Mewar(Maharana pratap) after Haldighati battle 1576

यह मेवाड़ की राजधानी थी। इस जगह महाराणा प्रताप ने 12 वर्षों तक निवास किया(1585-1597)। चावंड में महाराणा प्रताप द्वारा बहुत ही साधारण महलों को निर्माण करवाया गया था। इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा कहते है कि इन महलों के खंडहरों को देखकर लगता है कि यहां दिखावे या वैभव को प्रदर्शित करने के लिए कुछ भी नही किया गया था, इससे महाराणा प्रताप की सादगी का पता चलता है।

Chavand mahalचावंड में महाराणा प्रताप द्वारा बनवाए गए साधारण महल

हल्दीघाटी युद्ध के बाद सन 1585 से आने वाले 28 वर्षों तक चावंड मेवाड़ की राजधानी रही। यहां पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने देवी चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था।

बांडोली

Maharana Pratap chhatri
 वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की छतरी

चावंड से 3 किमी. की दूरी पर स्थित बांडोली गांव में स्थित केजड़ तालाब के बीच वीर योद्धा महाराणा प्रताप का अंतिम संस्कार किया गया था और यहीं पर महाराणा प्रताप की छतरी बनी हुई है।

Maharana pratap samadhi sthal
महाराणा प्रताप समाधि स्थल बांडोली (चावंड )


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