महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई । How did Maharana Pratap die in Hindi
महाराणा प्रताप की मृत्यु कैसे हुई? महाराणा प्रताप की मृत्यु जिस दिन हुई उस दिन अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने अपने सामंतो से किस प्रकार की बातें की थी? इसके अतिरिक्त जब महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार मुगल शासक अकबर के पास पहुंचा तो उस पर अकबर की क्या प्रतिक्रिया थी? उस समय मुगल दरबार में उपस्थित एक कवि दूरसा आढ़ा ने अकबर की इस प्रतिक्रिया के संबंध में क्या बातें लिखी है?
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आइए इन्हीं प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं।
मेवाड़ के इतिहास के प्रमुख स्रोतों में से एक स्रोत है वीर विनोद।
जो कविराज श्यामल के द्वारा लिखा गया है इस पुस्तक के अनुसार 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन का अंतिम समय चावंड में व्यतीत किया था जो कि वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर जिले में आता है और चावंड से एक से दो मील की दूरी पर एक गांव आता है बांडोली। इसी बांडोली गांव में नदी के किनारे महाराणा प्रताप अंतिम संस्कार किया गया था एवं इसी स्थान पर एक स्मारक बना हुआ है जिसे महाराणा प्रताप की छतरी कहा जाता है।
19 जनवरी 1597 को जब महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई उस दिन अपनी मृत्यु से पहले महाराणा प्रताप ने अपने सामंतों से क्या बात की थी?
एक स्तोत्र है उदयपुर राज्य का इतिहास जो गौरीशंकर हीराचंद ओझा के द्वारा लिखा गया है। इसमें पेज नंबर 402 पर और अलग-अलग प्रमुख स्त्रोतों को कोट (quote) करते हुए कुछ बातें लिखी हुई है।
किताब में लिखा गया है कि महाराणा प्रताप अपनी मृत्यु के समय चावंड में थे। जिस दिन महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई उस दिन वह बहुत दुखी थे और उनके चारों तरफ उनके सामंत बैठे हुए थे वही सामंत जो कठिनाई के समय में भी महाराणा प्रताप के साथ थे और अब उनके अंतिम समय में भी महाराणा प्रताप के पास में बैठे हुए थे।
सभी सामंत महाराणा प्रताप को बहुत दुखी और पीड़ा में देख रहे थे तो उन्हीं सामंतों में से सलूंबर के भी एक सामंत थे। सलूंबर वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर जिले में ही आता है तथा यहां के शासक चुंडावत हुआ करते थे तथा मेवाड़ के शासको में से एक शासक थे महाराणा लाखा इनके पुत्र थे चुंडा और चुंडा के वंशज ही चुंडावत थे। इन चुंडावतो का मेवाड़ के राजकीय निर्णयों में बहुत अधिक योगदान और प्रभाव हुआ करता था।
तो सलूंबर के सामंत ने हिम्मत करके महाराणा प्रताप से पूछ ही लिया कि आप इतने दुखी क्यों है? आखिर आप के प्राण आपके शरीर को आसानी से क्यों नहीं छोड़ रहे है?
तो महाराणा प्रताप ने जो अंतिम शब्द कहे उन्हे जानकर आप भी सोचेंगे कि कोई व्यक्ति इतना स्वाभिमानी कैसे हो सकता है।
महाराणा प्रताप ने यह कहा कि मेरा पुत्र अमरसिंह एक आराम पसंद व्यक्ति है और मुझे इस बात की उम्मीद कम ही है कि मेरी मृत्यु के पश्चात मेरा पुत्र मेरे वंश और राज्य के गौरव की रक्षा कर सकेगा अगर आप लोग मुझे राज्य के गौरव की रक्षा का वचन दोगे तो संभवतः मेरे प्राण मेरे शरीर को आसानी से त्याग सकते हैं।
महाराणा प्रताप के इन शब्दों को सुनकर सामंतों ने बप्पा रावल की गद्दी की शपथ लेकर कहा कि हम आपके राज्य और आपके वंश के गौरव की रक्षा करेंगे इसके बाद ही महाराणा प्रताप ने अपने प्राणों का त्याग किया।
महाराणा प्रताप किस बीमारी से मृत्यु को प्राप्त हुए इस विषय पर प्रकाश डालने के लिए एक स्त्रोत है "महाराणा यश प्रकाश" जो भूरसिंह शेखावत के द्वारा लिखा गया है। इसके पेज नंबर 139 पर लिखा गया है कि ईश्वर की माया भी अपार है, वो वीर(महाराणा प्रताप) जो मुसलमानों से युद्ध करते हुए कभी घायल नहीं हुए, वह वीर जिसने अपनी तलवार से बहुत सारे योद्धाओं को मृत्यु शैय्या पर सुला दिया आज कमान खींचने की वजह से घायल होकर इस संसार से हमेशा के लिए विदा हो गया।
इन पंक्तियों का मतलब यही है कि जब महाराणा प्रताप शेर का शिकार करने जा रहे थे और उन्होंने जब अपने कमान को खींचा तो कमान या प्रत्यंचा को खींचने पर महाराणा प्रताप के पेट वाले हिस्से पर बहुत जोर की चोट लगने पर महाराणा प्रताप बुरी तरह घायल हो गए।
कुछ दिनों में वह घाव बहुत बड़ा हो गया और इस वजह से महाराणा प्रताप काफी दिनों तक बीमार रहे और अंत में 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप ने अपने प्राणों का त्याग किया।
महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार जब अकबर के पास पहुंचा तो इस पर अकबर की क्या प्रतिक्रिया थी?
Akbar's reaction to Maharana Pratap's death
इस संबंध में उदयपुर राज्य का इतिहास पेज नंबर 402 और 404 पर एक कवि दुरसा आढ़ा के द्वारा कुछ बातें लिखी गई है जो कि उस समय मुगल दरबार में उपस्थित थे तो उनके द्वारा जो बातें लिखी गई है उन बातों को आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूं।
दुरसा आढ़ा के द्वारा यह लिखा गया कि जब अकबर को महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार मिला तो वह दुखी हुआ। अकबर की इस प्रतिक्रिया को देखकर मुगल दरबार में भी लोग बहुत आश्चर्यचकित थे।
अकबर ने दांतो तले अपनी जीभ दबाई और लंबी सांस ली और निः स्वास आंसू टपकाए।
दांतो तले अपनी जीभ दबाई से मतलब यह है कि अकबर को बहुत आश्चर्य हुआ।
व्यक्ति लंबी और गहरी सांस तब लेता है जब वह तनाव में होता है या जब कोई ऐसी खबर सुनता है जो उसे पसंद नहीं होती है तो अपने आप को रिलैक्स करने के लिए वह व्यक्ति लंबी सांस लेता है।
अकबर को इस बात का हमेशा मलाल रहा कि जहां बड़े-बड़े राजाओं और रियासतों ने मुगल शासक अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी किंतु इसके विपरीत महाराणा प्रताप ने कभी भी अकबर की अधीनता नही स्वीकार की।
अकबर को मलाल तो रहा होगा कि वह महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका परंतु मन ही मन महाराणा प्रताप के स्वाभिमान के प्रति सम्मान भी होगा क्योंकि अकबर के सामने बड़े-बड़े क्षेत्रफल वाली रियासतों ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए घुटने टेक दिए थे परंतु महाराणा प्रताप ने एक छोटे से क्षेत्रफल वाले मेवाड़ के लिए अपनी सुख-सुविधाओं को त्याग कर जीवन भर कष्ट का जीवन बिताया।
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MYSTERIES