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Kumbhalgarh fort history in Hindi
कुंभलगढ़ फोर्ट का इतिहास
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कुंभलगढ़ फोर्ट की ऊंचाई 1148 मीटर है और यह फोर्ट अरावली की 13 अलग-अलग चोटियों से घिरा हुआ है। इस फोर्ट के चारों ओर 36 किलोमीटर की परिधि में दीवार बनी हुई है जो कि चीन की ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बाद दूसरे नंबर पर आती है।
कुंभलगढ़ दुर्ग को कुंभलमेर, कुंभलमेरु और कुम्भपुर के नाम से भी जाना जाता है।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म इसी कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था तथा उनके पिता महाराणा उदय सिंह का राज्याभिषेक भी यही हुआ था।
कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर कटारगढ़ के नाम से एक लघु दुर्ग भी स्थित है जो कि महाराणा कुंभा का निवास स्थान था।
उदयपुर से कुंभलगढ़ दुर्ग की दूरी 82 किलोमीटर है। कुंभलगढ़ दुर्ग को चित्तौड़गढ़ फोर्ट के बाद मेवाड़ का सबसे महत्वपूर्ण किला माना जाता है।
सन 2013 में राजस्थान के पांच अन्य किलो के साथ कुंभलगढ़ फोर्ट को यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया गया था।
राणा कुंभा ने अपने शासनकाल में राज्य के 84 किलो में से 32 किलो का निर्माण स्वयं करवाया था। जिनमें से कुंभलगढ़ सबसे विशाल और महत्वपूर्ण फोर्ट है।
1535 में जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण किया था तब उदय सिंह को बचाकर इसी दुर्ग में लाया गया था और यहीं पर बाद में उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ था।
सन 1576 में अकबर के कहने पर शाहबाज खान ने कुंभलगढ़ दुर्ग पर कब्जा किया। सन 1576 के भीषण हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने इसी दुर्ग को अपना केंद्र बना लिया था इसी कारण अकबर ने दुर्ग पर कब्जा किया।
परंतु अकबर और शाहबाज खान कुंभलगढ़ फोर्ट पर ज्यादा समय तक कब्जा नहीं रख पाए। महाराणा प्रताप ने गुरिल्ला युद्ध पद्धति के द्वारा सन 1885 में इस दुर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया।
बाद में कुंभलगढ़ दुर्ग पर ब्रिटिशर्स ने अधिकार कर लिया था परन्तु कुछ समय बाद कुंभलगढ़ दुर्ग को उदयपुर राज्य को लौटा दिया गया था।
कुंभलगढ़ फोर्ट की बनावट
कुंभलगढ़ दुर्ग की ऊंचाई समुद्र तल से 3600 ft है। कुंभलगढ़ दुर्ग की दीवारों का पेरीमीटर 36 किलोमीटर है इसी कारण इसे चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार कहा जाता है।
कुंभलगढ़ फोर्ट की दीवारें लगभग 15 फीट की मोटाई की है। कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर 300 जैन मंदिर है तथा बाकी अन्य हिंदू मंदिर है इस प्रकार कुल मिलाकर दुर्ग के अंदर 360 मंदिर बने हुए हैं। कुंभलगढ़ दुर्ग में कुल 7 प्रवेश द्वार है। कुंभलगढ़ दुर्ग के आसपास अरावली की पर्वत श्रेणियां हैं अतः आप यदि इस दुर्ग की ऊंचाई से आसपास देखेंगे तो आपको पर्वत श्रेणियां देखने को मिलेंगी।
इतिहास की कुछ पुस्तकों के अनुसार जब रात के समय इस फोर्ट के आसपास किसान अपने खेतों में काम करते थे तो महाराणा कुंभा के द्वारा विशाल दीयो को जलाया जाता था जिनके अंदर कई किलो घी का प्रयोग किया जाता था।
कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर बने मंदिर
कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर 12 फीट ऊंचे प्लेटफार्म पर एक भगवान गणेश का मंदिर बना हुआ है तथा ऐसा माना जाता है कि इस दुर्ग के अंदर सबसे पहले इसी मंदिर को बनाया गया था। इसके अतिरिक्त कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर भगवान शिव को समर्पित नीलकंठ मंदिर भी है। भगवान शिव की मूर्ति ब्लैक स्टोन से निर्मित की गई है। मंदिर में मिले ताम्रपत्र के अनुसार इस शिव मंदिर का जीर्णोद्धार राणा सांगा के द्वारा करवाया गया था।
कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर सन 1513 में निर्मित पार्श्वनाथ जैन मंदिर भी है। इसके अतिरिक्त कुंभलगढ़ दुर्ग के अंदर भगवान शिव के मंदिर के पास खेड़ा देवी का मंदिर भी स्थित है। सूर्य मंदिर और पीतल शाह जैन मंदिर भी पर्यटकों के बीच प्रसिद्ध है।
कुंभलगढ़ दुर्ग पर कई आक्रमणकारियों ने आक्रमण करने की कोशिश की थी। पहला आक्रमण मांडू के शासक महमूद खिलजी के द्वारा किया गया था किंतु खिलजी इस दुर्ग पर कब्जा करने में असमर्थ रहा था। खिलजी के बाद गुजरात के शासक कुतुबुद्दीन ने भी कुंभलगढ़ दुर्ग पर कब्जा करने की कोशिश की परंतु उसे भी सफलता हाथ नहीं लग पाई।
दुर्भाग्य पूर्ण रूप से महाराणा कुंभा के पुत्र और उदासिंह ने छल से अपने पिता की हत्या कर दी थी। परंतु इस कृत्य को मेवाड़ की जनता और वहां के सामंतों ने बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया और महाराणा कुंभा के दूसरे पुत्र रायमल को राज गद्दी पर बैठाया। राणा सांगा, रायमल के ही पुत्र थे जिनका जन्म इसी दुर्ग में हुआ था।
ऐसा कहा जाता है जब सन 1443 में है कुंभलगढ़ दुर्ग का निर्माण शुरू हुआ था तब कुछ ना कुछ अड़चनें आती जा रही थी जिसकी वजह से दुर्ग का निर्माण कार्य बहुत धीरे चल रहा था। महाराणा कुंभा इस बात से बेहद चिंतित थे और सलाह के लिए उन्होंने एक संत को बुलाया। जब संत किले के अंदर आए तो उन्होंने कुंभलगढ़ दुर्ग की भूमि को कुछ देर देखा और कुछ समय पश्चात बताया कि इस दुर्ग का निर्माण कार्य तभी पूरा हो सकेगा जब इस जगह पर कोई मनुष्य अपना बलिदान देगा।
महाराणा कुंभा ने संत की बात सुनी तो वो बहुत परेशान हो गए। संत भी महाराणा कुंभा को देखकर उनकी स्थिति समझ गए, उन्हें चिंतित देखकर संत ने कहा कि मैं खुद इस दुर्ग के लिए अपना बलिदान दूंगा।
इसके पश्चात उन्होंने महाराणा कुंभा से आज्ञा मांगी और पहाड़ी पर चल दिए उन्होंने कहा कि जहां चलते चलते मेरे कदम रुक जाए वहीं पर मुझे मार दिया जाए और उस स्थान पर एक देवी के मंदिर का निर्माण करवाया जाए। संत के कहे अनुसार जब वह 36 किलोमीटर की दूरी पर जाकर रुक गए तब वहां उन्होंने अपना बलिदान दिया और उसी जगह पर एक देवी का मंदिर का निर्माण भी किया गया।
कुंभलगढ़ घूमने का सही समय
यदि आप कुंभलगढ़ घूमने के लिए आना चाहते हैं तो अक्टूबर से तो फरवरी तक का समय सबसे अच्छा रहता है। यहां कुंभलगढ़ अभ्यारण भी है तो आप अच्छे मौसम का लुत्फ उठाते हुए वन्य जीव और जंगली जानवरों को भी देख सकते हैं।
कुंभलगढ़ किले का प्रवेश शुल्क तथा किले के खुलने और बंद होने का समय
कुंभलगढ़ दुर्ग की एंट्री फीस भारतीय पर्यटकों के लिए ₹10 रखी गई है तथा विदेशी पर्यटको के लिए यह ₹200 होती है।
कुंभलगढ़ दुर्ग सुबह 9:00 बजे से तो शाम 6:00 बजे तक खुला रहता है। यदि आप कुंभलगढ़ फोर्ट में घूमने के लिए जा रहे हैं तो कोशिश कीजिए कि अधिकतम दिन में 2:00 बजे तक आप पहुंच जाएं क्योंकि कुंभलगढ़ फोर्ट को अच्छे से देखने के लिए कम से कम 3 से 4 घंटों का समय चाहिए।
कुंभलगढ़ कैसे पहुंचे
कुंभलगढ़ राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से रोड नेटवर्क के द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है इसके अतिरिक्त कुंभलगढ़ का निकटतम रेलवे स्टेशन फालना स्टेशन है और कुंभलगढ़ के सबसे नजदीक का हवाई अड्डा उदयपुर का हवाई अड्डा है।
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