करणी माता मंदिर राजस्थान। karni mata mandir Rajasthan in Hindi

करणी माता मंदिर राजस्थान। karni mata mandir Rajasthan in Hindi

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Karni Mata Mandir in Bikaner deshnok Rajasthan in Hindi

करणी माता मंदिर बीकानेर(देशनोक) का इतिहास। Karni Mata Mandir Bikaner Rajasthan history in Hindi

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करणी माता मंदिर बीकानेर से 30 किलोमीटर दक्षिण में देशनोक गांव में स्थित है। लगभग 650 वर्ष पूर्व करणी माता इस मंदिर वाली जगह पर अपने इष्ट देव की पूजा किया करती थी।

करणी माता का जन्म चारण कुल में विक्रम संवत् सं. 1444 अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को ( 20 सितम्बर, 1387 ई.) जोधपुर जिले के सुवाप गांव में हुआ था। करणी माता के पिता जी का नाम मेहाजी चारण तथा माता जी का नाम देवलबाई था। करणी माता के बचपन का नाम रिद्धि बाई था। करणी माता ने जोधपुर और बीकानेर रियासतों के महाराजाओं के द्वारा निवेदन करने पर मेहरानगढ़ दुर्ग और बीकानेर दुर्ग की नींव रखी थी।
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करणी माता के पिता मेहाजी को विवाह होने के बाद कई वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई थी। संतान प्राप्ति करने के लिए मेहाजी वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज माता के यहां मन्नत मांगने गए थे। हिंगलाज माता के आशीर्वाद से मेहाजी को सात पुत्रियों की प्राप्ति हुई। करणी माता मेहाजी जी की छठी संतान थी।

बाद में हिंगलाज माता के आशीर्वाद से मेहाजी को दो पुत्रों की भी प्राप्ति हो गई जिनका नाम सारंग व सातल था।

करणी माता का विवाह और विवाह के पश्चात स्थिति

जब करणी माता की उम्र विवाह योग्य हो गई तो पिता मेहाजी को चिंता होने लगी। कुछ समय वर ढूंढने के बाद अंततः करणी माता का विवाह साठिका गांव के देपाजी के साथ संपन्न हुआ।

विवाह के पश्चात सुवाप से लौटते समय डोली में विराजमान करणी माता ने अपने पति को दो चमत्कार दिखाएं। जब देपाजी को प्यास लगी तो करणी माता ने देपाजी को मरुस्थल में जल से भरा सरोवर दिखाया।

जब देपाजी ने डोली का पर्दा हटाकर करणी माता को देखना चाहा तो करणी माता ने साक्षात दुर्गा जी का रूप दिखाया। यह देखकर देपाजी थोड़ा घबरा गए। तब देपाजी को करणी माता ने बहुत शांति से समझाया कि मेरा जन्म तो मानव कल्याण के लिए हुआ है यदि आप सांसारिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो मैं आपका विवाह अपनी छोटी बहन से करवा दूंगी और जो मेरी छोटी बहन की संतानें होंगी वो मेरी ही संताने मानी जाएगी। इसके बाद देपाजी का विवाह करणी माता की छोटी बहन के साथ संपन्न होता है और उनकी चार संताने होती है।

करणी माता का ससुराल साठिका गांव था। साठिका गांव में पानी की बहुत समस्या थी और गांव में सिर्फ एक ही कुआं था। एक बार जब करणी माता पशुधन को पानी पिलाने ले गई तो गांव वासियों ने उनका बहुत विरोध किया तथा गांव वासियों ने कहा कि यहां पर सिर्फ हमारी गाये ही पानी पियेंगी।

इसके बाद करणी माता ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ साठिका गांव का त्याग कर दिया और देशनोक गांव में बस गई जहां पर वर्तमान में करणी माता मंदिर बना हुआ है।

करणी माता मंदिर की कुछ विशेष बाते


करणी माता मंदिर में हजारों की संख्या में भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए माता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा यह मंदिर अपने काबो (चूहों) के लिए भी प्रसिद्ध है। अनुमान के मुताबिक इस मंदिर में 25000 से भी ज्यादा काबा है।

इन काबो को करणी माता की संतान ही माना जाता है। अधिकतर चूहे भूरे रंग के ही हैं बाकी सिर्फ छह से सात चूहे सफेद रंग के है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के अंदर जो सफेद चूहों के दर्शन करने में सफल हो जाता है वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है।

मंदिर परिसर में इतने सारे काबा (चूहों) को देखकर अद्भुत अनुभव होता है। इतनी बड़ी संख्या में चूहे होने के बाद भी ये कभी किसी श्रद्धालु को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

चूहों के लिए मंदिर के अंदर ही भोजन की व्यवस्था की जाती है। प्रत्येक दिन मंदिर के सेवक बाजरे की रोटी, फल, पेड़े,खीरे, दूध के विशाल कटोरे आदि अपने हाथों से पहले से निर्धारित स्थान पर रख देते है। इसके बाद सभी काबा अनुशासन पूर्वक अपना भोजन करते हैं।

इन चूहों के शरीर की संरचना घर में पाए जाने वाले साधारण चूहों जैसी नहीं होती है। मंदिर में आए किसी श्रद्धालु से अगर कभी गलती से काबा पर पैर रखा जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तो श्रद्धालु को एक सोने या चांदी का काबा मंदिर में भेट करना होता है।

करणी माता के चमत्कार/ कुछ रोचक बातें


  • जब करणी माता का जन्म छठी पुत्री के रूप में हुआ तो करणी माता की बुआ ने ताना मारा कि घर में छठा पत्थर आ गया है। ऐसा कहते ही बुआ के हाथ की अंगुलियां टेढ़ी हो गई। 

  • कुछ दिनों बाद करणी माता ने अपनी बुआ से कहा कि मेरे बालों में कंघी कर दीजिए तो बुआ ने उत्तर दिया कि मेरी अंगुलियां ठीक से काम नहीं करती। तब करणी माता ने अपने हाथों से बुआ को स्पर्श किया और स्पर्श करते से ही उनकी अंगुलियां सीधी हो गई।

  • एक बार करणी माता की छोटी बहन के पुत्र लक्ष्मण की राजस्थान की कोलायत तहसील में स्थित कपिल सरोवर में दुर्घटनावश गिर जाने से मृत्यु हो गई तब करणी माता ने यम से लक्ष्मण को जीवित करने की प्रार्थना की। यम ने लक्ष्मण को जीवित करने से तो मना कर दिया परंतु उनके दुख को देखकर आशीर्वाद दिया कि लक्ष्मण का एक काबा के रूप में पुनर्जन्म होगा।

  • करणी माता जब साठिका से देशनोक गांव में आई तब वहां पशुओं को चराने के लिए कोई उपयुक्त जगह नहीं थी। इस समस्या को देखने के बाद करणी माता ने पशुपालकों और जनसामान्य की भलाई के लिए 10 हजार बीघा क्षेत्र में ओरण (जहां पशुओं को चराया जाता है) की स्थापना की।

  • करणी माता ने पूगल के शासक राव शेखा को मुल्तान (पाकिस्तान) के बंदीगृह से मुक्त करवाया था। बाद में करणी माता के आशीर्वाद से राव शेखा की बेटी रंगकंवर का विवाह राव बीका से संपन्न हुआ।

करणी माता मंदिर की बनावट तथा मंदिर में होने वाली प्रमुख गतिविधियां

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करणी माता राठौड़ राजवंश की पूजनीय देवी है। देशनोक में स्थित करणी माता मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 20 वी शताब्दी में करवाया था।

करणी माता मंदिर का अधिकतर भाग संगमरमर से बना हुआ है और इसकी वास्तुकला कुछ हद तक मुगल वास्तुकला से मिलती जुलती है। मंदिर के आगे वाले भाग में आकर्षक ठोस चांदी के दरवाजे लगे हुए है जो परिसर के अंदर प्रवेश की ओर ले जाते हैं। चांदी के दरवाजों पर उकेरे गए चित्र कई प्राचीन कहानियों को दर्शाते हैं।   

करणी माता की पवित्र मूर्ति मंदिर के अंदर गर्भगृह में स्थित है। आप करणी माता के एक हाथ में त्रिशूल देख सकते हैं । मूर्ति की लंबाई 75 सेमी है जिसमें माता ने एक मुकुट और माला धारण की हुई  है। करणी माता की मूर्ति के आसपास उनकी बहनों की भी मूर्तियां बनी हुई है। सन् 1999 में हैदराबाद शहर के प्रसिद्ध ज्वैलर कुंदन लाल वर्मा ने मंदिर में संगमरमर की कारीगरी और चांदी के दरवाजों को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया था।

करणी माता मंदिर में प्रतिदिन नियम पूर्वक चारण पुजारियों द्वारा आरती और दैनिक पूजा पाठ किया जाता है तथा मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रसादी का वितरण किया जाता है। करणी माता मंदिर में आने वाले श्रद्धालु माता को तथा काबो (चूहों) को अलग अलग प्रकार के प्रसाद भी चढ़ाते हैं। 

श्रद्धालुओं द्वारा दी जाने वाली भेंट को दो अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया गया है:-

द्वार भेंट - द्वार भेंट को मंदिर के पुजारियों तथा करणी माता मंदिर में काम करने वाले श्रमिकों के लिए प्रयोग किया जाता है।

कलश भेंट - कलश भेंट को मुख्यतः करणी माता मंदिर के रखरखाव के लिए उपयोग किया जाता है।

बीकानेर शहर, करणी माता मंदिर के लिए तो जाना ही जाता है इसके अतिरिक्त यहां पर हर वर्ष 2 बार करणी माता मेले का आयोजन किया जाता है।

1) पहले मेले का आयोजन चैत्र शुक्ल एकम् से चैत्र शुक्ल दशमी तक प्रत्येक वर्ष, मार्च महीने और अप्रैल महीने के मध्य किया जाता है।

2) दूसरे मेले का आयोजन अश्विन शुक्ल से अश्विन शुक्ल दशमी तक, हर साल सितंबर और अक्टूबर महीने के मध्य किया जाता है।

इन दोनों मेंलो में हजारों की संख्या में लोग श्रद्धा पूर्वक आते हैं।

गुरुवार, 1595 को चैत्र शुक्ल की नवमी को करणी  माता अनंत में लीन हो गई।


श्री करणी माता जी की आरती

(Shri Karni mata aarti in Hindi)

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करणी चालीसा

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