महाराणा प्रताप का स्वामी भक्त हाथी- राम प्रसाद की कहानी । Maharana pratap's elephant Ramprasad story in Hindi

महाराणा प्रताप का स्वामी भक्त हाथी- राम प्रसाद की कहानी । Maharana pratap's elephant Ramprasad story in Hindi

महाराणा प्रताप के हाथी राम प्रसाद की कहानी । Maharana Pratap's elephant Ramprasad story in Hindi


$ads={2}


प्रत्येक वर्ष 18 जून को हल्दीघाटी युद्ध के वीर सपूतों की याद में हल्दीघाटी शौर्य दिवस मनाया जाता है। इसी दिन हल्दीघाटी का भीषण संग्राम शुरू हुआ था। जहां साहस, त्याग, पराक्रम और मातृभूमि को स्वतंत्र रखने के प्रण के लिए हजारों शूरवीरों ने वीरगति प्राप्त की थी। 

परंतु इस पोस्ट में आप हल्दीघाटी युद्ध के किसी शूरवीर योद्धा के बारे में नहीं बल्कि एक ऐसे पशु की स्वामी भक्ति जानेंगे जो महाराणा प्रताप के बहुत ही निकट था। महाराणा प्रताप के चेतक अश्व के बारे में तो सभी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं परंतु महाराणा प्रताप के स्वामिभक्त हाथी के बारे में बहुत कम लोग जानते है।


रामप्रसाद और हिंदुआ सूरज महाराणा प्रताप का साथ बचपन से ही था। मेवाड़ी हाथियों में रामप्रसाद बहुत ही चतुर और समझदार था। रामप्रसाद इतना बुद्धिमान था कि किसी भी महावत को उसे कोई निर्देश देने की आवश्कता ही नहीं रहती थी।


रामप्रसाद जब भी युद्ध भूमि में होता था तो उस पर हमेशा 80 किलो की तलवार बांधी जाती थी। इतनी भारी तलवार लगी होने के कारण जब भी शत्रु दल का कोई घोड़ा या हाथी सामने आता था तो रामप्रसाद उन्हें बहुत ही आसानी से उन्हें मौत के घाट उतार देता था।

हल्दीघाटी के भीषण संग्राम में रामप्रसाद ने मुगल सेना के 13 हाथियों को अकेले ही मार गिराया था। युद्ध में रामप्रसाद मुगल सेना के हाथियों को आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था। 

हल्दीघाटी युद्ध का आंखों देखा हाल अपनी पुस्तक "मुंतखब उल तवारिख" में लिखने वाला मुगल दरबार का अधिकारी बदायूनी ने भी इस घटना का जिक्र अपनी किताब में किया है। बदायूनी के द्वारा "मुंतखब उल तवारिख" में लिखा गया है कि "मैंने इस तरह का दृश्य पहले कभी नहीं देखा था जब एक हाथी बिना महावत के युद्ध भूमि में लड़ रहा हो। रामप्रसाद को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह अकेला ही हमारे 100 हाथियों पर भारी पड़ेगा।"

रामप्रसाद का पराक्रम और समझदारी देखकर हल्दीघाटी युद्ध में मौजूद मुगल सेना के बड़े-बड़े सेनापति रामप्रसाद को जीवित कैद करना चाहते थे। बदायूनी आगे लिखता है कि उस हाथी को पकड़ने के लिए हमें 7 हाथियों का चक्रव्यूह तैयार करना पड़ा तथा प्रत्येक हाथी पर 2 महवतो को बैठाया गया। इस प्रकार 7 हाथियों पर कुल 14 महावतो के बैठने के बाद अंततः मुगल सेना रामप्रसाद के पैरों में लोहे की बेड़ियां डाल पायी।

उसकी वीरता और समझदारी से यह समझना मुश्किल नहीं था कि उसे उसके स्वामी ने बहुत ही उच्च प्रशिक्षण दिया होगा।

महाराणा प्रताप के हाथी रामप्रसाद का जिक्र इतिहास में इतना ही मिलता है। लेकिन जनश्रुति और कुछ पुस्तकों के अनुसार बंदी बनाने के बाद बादशाही फरमान को ध्यान में रखकर रामप्रसाद को अकबर के समक्ष पेश किया गया। 

अकबर रामप्रसाद की कद काठी देखकर अचंभित रह गया और उसने आदेश दिया कि अब से यह मेरा निजी हाथी होगा और इसका नाम रामप्रसाद नहीं बल्कि पीर प्रसाद होगा। इसका ध्यान रखा जाए और इसकी पीठ पर शाही गद्दी पहनाई जाए, एक हफ्ते बाद इस पर सवार होकर हम सेर पर निकलेंगे। 

बस फिर क्या था बादशाही आदेश पाकर सभी रामप्रसाद की खिदमत में लग गए। कोई रामप्रसाद को गन्ने खिलाने का जतन करने लगा तो कोई उसके लिए तरबूज और केले लेकर आया लेकिन रामप्रसाद ने किसी भी तरह के खाने को मुंह तक नहीं लगाया। 

राम प्रसाद को यह आभास था कि वह शत्रु की कैद में है। वह एकटक किले के मुख्य द्वार को देखते रहता था, इस इंतजार में कि महाराणा प्रताप आएंगे और प्यार से उसका माथा पुचकारेंगे। जिसके चलते वह मुख्य द्वार को बार-बार देखता रहता था। 

जब रामप्रसाद ने 3 दिन तक कुछ नहीं खाया तो बादशाही आदेश के अनुसार उसे जबरदस्ती खाना देने और यातना देने का दौर शुरू हुआ। 18 दिनों की यातनाओं के बाद वह निढाल होकर जमीन पर गिर गया और वीरगति को प्राप्त हुआ। 

उसने जानवर होने के बावजूद कभी भी शाही गद्दी को अपनी पीठ पर नहीं रखने दिया और अपने स्वामी महाराणा प्रताप के स्वाभिमान को अक्षुण्ण बनाए रखा। 

अकबर को जब यह सूचना मिली होगी तो शायद उसने सोचा ही होगा कि जिस स्वामी का हाथी ही इतना स्वाभिमानी है तो उसका स्वामी कितना अधिक स्वाभिमानी होगा !

Post a Comment

Previous Post Next Post

1

2

DMCA.com Protection Status