राजपूत कुलभूषण महाराणा प्रताप के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाए/कुछ रोचक बातें
Important events in the life of Maharana Pratap in Hindi
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महाराणा प्रताप ने चेतक को कहा से खरीदा? महाराणा प्रताप के अंतिम शब्द क्या थे?
ऐसी ही कुछ महाराणा प्रताप से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में आप इस पोस्ट में जानेंगे।
चेतक को खरीदना
महाराणा प्रताप जब राजकुमार थे, कंधार का एक व्यापारी आलम नाम का घोड़ा बेचने के लिए नगर लाया। घोड़े की विशेषताएं सुनकर प्रताप ने व्यापारी को बुलाया और घोड़े की परीक्षा करने के लिए आलम घोड़े को एक बड़े मैदान में खड़ा करके उसके खुरो को लोहे की किसी मजबूत वस्तु के साथ जमीन में गाड़ दिया।
इसके बाद प्रताप घोड़े पर सवार हुए तथा चाबुक लगाकर एड लगाई। घोड़े के चारों खुर वही गड़े हुए रह गए और लहूलुहान घोड़ा मैदान में दौड़ता रहा। घोड़े को रोककर जैसे ही प्रताप नीचे उतरे घोड़ा वहीं गिर कर बेहोश हो गया। प्रताप ने प्रसन्न होकर घोड़े का मूल्य देकर आलम को खरीद लिया। बाद में महाराणा प्रताप ने घोड़े का नाम बदलकर चेतक रख दिया।
स्वामीभक्त चेतक ने हल्दीघाटी के युद्ध में एक पैर कट जाने पर भी युद्ध के मैदान से महाराणा प्रताप को बचा कर ले गया और उसके बाद ही प्राण त्यागे।
कुंभलगढ़ के कुओं में जहर
हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप कुंभलगढ़ जाकर पुनः लड़ाई की तैयारी करने लगे थे तब शाहबाज खान ने आकर कुंभलगढ़ दुर्ग को घेर लिया था और एक सामंत को रुपयों और जागीर का लालच देकर अपने पक्ष में करके उसने कुंभलगढ़ के बड़े कुएं के पानी में जहर मिलवा दिया।
जब मौतें होनी शुरू हुई और महाराणा प्रताप को इस बारे में पता चला तो किले के कुछ विश्वस्त लोगों की सलाह से महाराणा प्रताप दुर्ग के पास जंगल में चले गए।
शत्रुओं के भयंकर आक्रमण को देखकर बाद में दुर्ग के फाटक खोले गए और इसके बाद बहुत से राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए और किले पर शाहबाज खान का कब्जा हो गया।
मेवाड़ की पगड़ी का गौरव
मेवाड़ का एक व्यापारी किसी काम की वजह से अकबर के दरबार में गया। अकबर को सलाम करते समय उस व्यक्ति ने अपने सिर से पगड़ी उतार कर अपने हाथों में ली और फिर सलाम किया इससे अकबर बड़ा अप्रसन्न हुआ और व्यापारी से पगड़ी उतारने का कारण पूछा तो व्यापारी ने कहा कि यह पगड़ी मेवाड़ के महाराणा प्रताप की दी हुई है इस कारण यह झुक नहीं सकती।
गाडिया लोहारों द्वारा प्रतिज्ञा पालन
"चित्तौड़गढ़ को जब तक शत्रुओं के शासन से मुक्त ना करा लेंगे तब तक चित्तौड़गढ़ में प्रवेश नहीं करेंगे" इस प्रकार की प्रतिज्ञा प्रताप के साथ उनके कुछ सामंतों ने ली थी।
इस प्रतिज्ञा को पूरी करने के लिए कुछ सामंतों ने बड़े पैमाने पर लोहे के शस्त्र बनाना आरंभ कर दिए थे। वह महाराणा प्रताप को शस्त्र देते रहे तथा महाराणा प्रताप के साथ घूमते भी थे और जहां भी विश्राम लेते थे वही शस्त्र बनाना आरंभ कर देते थे।
प्रताप की मृत्यु के बाद भी उन्होंने शस्त्र बनाना नहीं छोड़ा परंतु जब चित्तौड़गढ़ को जीतने की कोई आशा नहीं दिखी तो इन्होंने खेती के औजार बनाना आरंभ किया।
महाराणा प्रताप द्वारा यजमानों को रोटी देना
महाराणा प्रताप और उनका परिवार 3 दिनों से भूखा था कहीं से अनाज लाकर कुछ रोटियां बनाई और सबको अपने अपने हिस्से की रोटियां दे दी किंतु प्रताप की पुत्री ने अपना हिस्सा शाम को अपने छोटे भाई को देने के लिए सुरक्षित रख लिया।
कुछ देर के बाद यजमान आए किंतु महाराणा प्रताप के पास उन्हे देने व खिलाने के लिए कुछ भी नहीं था। महाराणा प्रताप की समझदार पुत्री अपने पिता की स्थिति समझ गई और भोजन का अपना बचाया हुआ हिस्सा ले आई और महाराणा प्रताप को दे दिया।
जब यजमान रोटी खा कर चल दिए तो उसके कुछ क्षण बाद उनकी पुत्री बेहोश हो गई और बहुत प्रयत्न करने के बाद ही होश आ सका। महाराणा प्रताप को जब बाद में अपनी पुत्री की समझदारी व त्याग के बारे में पता चला तो उन्हे बहुत दुख तो हुआ परंतु अंदर ही अंदर वह अपनी पुत्री पर बहुत गर्व कर रहे थे।
हकीम खान की आदर्श भावना
एक बार महाराणा प्रताप के साथी सामंतों की कुछ महिलाओ को मुगलों ने कैद में ले लिया था। मुसलमान सैनिक उन्हे कहां ले गए थे यह पता नहीं लग रहा था। दूसरे दिन रात्रि को महाराणा प्रताप का सेनापति हकीम खान घोड़े पर बैठकर प्रताप के पास आया और बोला मुझसे यह देखा नहीं जाता कि जब आपके सामंत मुसलमान शाहजादियां पकड़ लाए थे तो आपने उन्हें सम्मान वापस लौटाया था किंतु आज आपके शत्रु आपकी बहन बेटियों की इज्जत लूटने पर उतारू है।
इसके बाद हकीम खान ने महाराणा प्रताप से निवेदन किया कि आप मेरे साथ चलिए और उन्हें छुड़वाइए। महाराणा प्रताप ने तुरंत अपने विश्वस्त सैनिकों को आदेश दिया और हकीम खान के साथ खुद भी महिलाओं को मुक्त कराने के लिए गए।
इसके बाद रात्रि में ही शत्रु पर आक्रमण करके महिलाओं को आजाद करवाया गया। महाराणा प्रताप, हकीम खान की आदर्श भावना पर बहुत प्रसन्न हुए।
महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह का मिलन
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप, झाला मानसिंह के कहने से जब लौट रहे थे तब दो मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप का पीछा किया। शक्ति सिंह ने जब यह देखा तो भाई का प्रेम उमड़ आया और मुगल सैनिकों का पीछा किया।
आगे एक नाले को लांघ कर महाराणा प्रताप और चेतक तो आगे बढ़ गए किंतु शक्ति सिंह ने मुगल सैनिकों को वही मार गिराया तथा शक्ति सिंह ने नाला लांघ कर "ओ नीला घोड़ा रा असवार" की जोर से आवाज लगाई, प्रताप रुक गए और शक्ति सिंह, महाराणा प्रताप के पास पैरों में गिर पड़ा।
दूसरी तरफ चेतक युद्ध में पैर कट जाने की वजह से घायल हो गया था और कुछ समय में चेतक ने अपने प्राण त्याग दिए। शक्ति सिंह ने अपना घोड़ा प्रताप को दिया और वहां से उन्हें रवाना किया और स्वयं दोनों मुगल सैनिकों में से एक का घोड़ा लेकर वापस युद्ध स्थल पर आ गया।
महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा
मेवाड़ पर मुगलों के आक्रमण से प्रताप के अन्य सामंतो के साहस में कमी आने लगी थी ऐसी स्थिति में महाराणा प्रताप ने सब सामंतो को एकत्रित कर उन्हे रघुकुल की मर्यादा की रक्षा करने और मेवाड़ को पूर्ण स्वतंत्र कराने का विश्वास दिलाया और प्रतिज्ञा की, "कि जब तक मेवाड़ को स्वतंत्र नहीं करा लूंगा तब तक राज महलों में नहीं रहूंगा पलंग पर नहीं सोऊंगा और धातु के बर्तन में भोजन नहीं करूंगा।"
महाराणा प्रताप के अंतिम शब्द
महाराणा प्रताप जब मृत्यु शैया पर लेटे हुए थे। दर्द अधिक था किंतु साथ में चिंतित भी बहुत थे। पास बैठे सामंतों ने चिंता का कारण पूछा तो महाराणा प्रताप ने बताया कि मेरे मरने के बाद क्या अमर सिंह मेवाड़ की रक्षा कर पाएगा? यह सुनकर सामंतों के साथ अमर सिंह ने स्वतंत्रता के संघर्ष को जारी रखने का व्रत लिया। इससे महाराणा प्रताप को बड़ी शांति मिली और कुछ ही देर में महाराणा प्रताप ने अपना नश्वर शरीर त्याग दिया।
अपने अंतिम समय में भी महाराणा प्रताप को अपनी पीड़ा से ज्यादा चिंता अपनी मातृभूमि की थी।