पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई । How did Prithviraj Chauhan die in Hindi
आइए सीधे इस प्रश्न के उत्तर की ओर चलते हैं।
क्या पृथ्वीराज चौहान ने अपनी आंख फोड़ दिए जाने के बावजूद शब्दभेदी बाण चलाकर यानी बिना देखे मोहम्मद गौरी को मार दिया था?
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या फिर मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को गजनी ले जाकर उनकी हत्या की थी?
या मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को अजमेर के किले में ही कैद करके मार डाला था या फिर ऐसा हुआ था कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को अजमेर का राज्य वापस दे दिया हो और उनको आश्रित शासक बनाया हो लेकिन जब पृथ्वीराज चौहान कोई षड्यंत्र करते हुए पकड़े गए तो उनकी हत्या कर दी गई हो?
आइए इन सभी प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास करते है पर सिर्फ सही तथ्यों के आधार पर ही।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के संबंध में पहला स्त्रोत - पृथ्वीराज रासो
The first source about the death of Prithviraj Chauhan - Prithviraj Raso
यहां पर सबसे पहले स्तोत्र की बात करते है जो कि है पृथ्वीराज रासो।
पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई के द्वारा लिखा गया है, पृथ्वीराज रासो में यह बताया गया है कि मोहम्मद गौरी ने जब पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया तो पराजित करने के बाद मोहम्मद गौरी, पृथ्वीराज चौहान को गजनी लेकर गया तथा वहां पर उसने पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी।
बाद में पृथ्वीराज चौहान के मित्र और उनके दरबारी कवि चंदबरदाई गजनी गए। वहां पर उन्होंने मोहम्मद गौरी को यह बताया कि पृथ्वीराज चौहान की आंखें नहीं है लेकिन फिर भी पृथ्वीराज चौहान बिना देखे भी लक्ष्य पर निशाना लगा सकते है तो आप इनका यह कौशल देखिए।
मोहम्मद गौरी इस प्रतिभा को देखने के लिए तैयार हो गया। इसके बाद मोहम्मद गौरी एक बड़े सिंहासन पर बैठ गया जो कि कुछ ऊंचाई पर था।
अब पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के सामने लाया गया। पृथ्वीराज चौहान के पास मे ही इनके मित्र चंदबरदाई मौजूद थे, हालांकि पृथ्वीराज चौहान की आंखें तो नहीं थी लेकिन फिर भी वह अपने मित्र चंदबरदाई की आवाज को पहचान गए और चंदबरदाई ने कविता के माध्यम से यह बताया कि मोहम्मद गौरी कितनी ऊंचाई पर बैठा हुआ है ताकि पृथ्वीराज चौहान को यह पता चल सके कि कितनी ऊंचाई पर तीर चलाना है जिससे मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो जाए।
तो चंदबरदाई ने कविता के माध्यम से कहा कि -
"चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान "
इस कविता के माध्यम से चंदबरदाई ने अपने मित्र पृथ्वीराज चौहान को यह संकेत दे दिया कि मुहम्मद गौरी कितनी ऊंचाई पर बैठा हुआ है। पृथ्वीराज चौहान ने इस बात का अंदाजा लगाते हुए एक तीर छोड़ा जिसके कारण मोहम्मद गोरी मारा गया।
इसके बाद चंदबरदाई ने कटार घोपकर पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी और स्वयं ने भी आत्महत्या कर ली।
अब आपके में यह प्रश्न अवश्य आ रहा होगा कि पृथ्वीराज रासो तो चंदबरदाई ने लिखी है तो चंदबरदाई के स्वयं के मरने के बाद वो खुद कैसे पृथ्वीराज रासो में इस घटना को लिख सकते है?
इसका उत्तर है कि पृथ्वीराज चौहान के द्वारा मुहम्मद गौरी को गजनी में मारने की घटना का जिक्र जों पृथ्वीराज रासो में हुआ है वो चंदबरदाई के पुत्र जल्हण के द्वारा किया गया है।
पृथ्वीराज चौहान के द्वारा मुहम्मद गौरी का मारा जाना जों कि पृथ्वीराज रासो में बताया गया है, इसका दूसरे किसी भी ऐतिहासिक स्त्रोतों में अनुमोदन नहीं होता यानी कि इस कथा को इतिहासकार मान्यता नहीं देते।
लेकिन पृथ्वीराज रासो में जो बताया गया है उस पर प्रकाश डालना ज़रूरी था।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई इस संबंध में दूसरा स्त्रोत - हमीर महाकाव्य
Another source on how Prithviraj Chauhan died - Hamir epic
अब दूसरे स्तोत्र कि हम बात करते हैं और दूसरा स्त्रोत हमीर महाकाव्य है जों कि नयन चन्द्र सुरी के द्वारा लिखा गया।
हमीर महाकाव्य में हमको बताया गया है कि तराईन के दूसरे युद्ध में पराजित होने के बाद मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया था और फिर कैद करने के बाद पृथ्वीराज चौहान की हत्या करवा दी गई थी। यह कारण बताया गया है नयन चन्द्र सुरी के द्वारा लिखे गए हमीर महाकाव्य में।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के संबंध में विरुद्धविधि विध्वंस तथा पृथ्वीराज प्रबंध में क्या लिखा गया है?
इसके अतिरिक्त एक और स्तोत्र है विरूद्धविधिविध्वंस जिसमें बताया गया है कि युद्ध स्थल पर ही पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई थी।
इसके अतिरिक्त एक और स्तोत्र है जिसका नाम है पृथ्वीराज प्रबंध। पृथ्वीराज प्रबंध में यह बताया गया है कि तराईन के दूसरे युद्ध में हारने के बाद मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया था और कैद करने के बाद पृथ्वीराज चौहान को अजमेर लाया गया।
पृथ्वीराज प्रबंध में यह बताया गया है कि अजमेर में पृथ्वीराज चौहान को जहां कैद करके रखा गया था उसी के सामने सिंहासन लगाकर मुहम्मद गौरी अपना राज कार्य किया करता था।
यह बात पृथ्वीराज चौहान को बहुत अपमानजनक लगती थी वो मुहम्मद गौरी को अपने सामने ही राज कार्य करते नहीं देख सकते थे इसलिए उन्होंने अपने पूर्व मंत्री प्रताप सिंह को धनुष व बाण दोनों लाने को कहा ताकि वो मुहम्मद गौरी की हत्या कर सके लेकिन प्रताप सिंह ने पृथ्वीराज चौहान को धनुष व बाण तो लाकर दे दिए लेकिन इस बात की सुचना मुहम्मद गौरी को भी जाकर दे दी।
इसी कारण मोहम्मद गोरी ने एक गड्ढा खुदवाया उसमे पृथ्वीराज चौहान को फेका गया और उनके ऊपर पत्थर डाल दिए गए जिसके कारण पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई।
ये कारण बताया गया है पृथ्वीराज प्रबंध में।
समकालीन लेखक यूफी और हसन निजामी का तराईन युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान को लेकर विचार
Contemporary writers Yufi and Hasan Nizami's thoughts on Prithviraj Chauhan after the battle of Tarain
अब इसके बाद तराईन के दूसरे युद्ध के समय जो दो समकालीन लेखक थे जिनका नाम था युफी और हसन निजामी।
इनमे से हसन निजामी जिनके द्वारा ताज - उल - मासिर लिखा गया है। हसन निजामी और यूफी दोनों ही हमे यह बताते है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया था।
तो इस तरह पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में अलग अलग ग्रंथो में अलग अलग बातें बताई गई है। अब अगर हम इन सब बातो का निष्कर्ष निकाले तो इस संबंध में गोपीनाथ शर्मा के द्वारा बताया गया तथ्य महत्वपूर्ण है।
गोपीनाथ शर्मा ने निष्कर्ष निकालने के लिए दो स्तोत्रो की मदद ली है। एक है पृथ्वीराज प्रबंध और दूसरा स्तोत्र हसन निजामी का ताज उल मासिर।
और इन दोनों में तुलना करते हुए एक निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। जैसा कि पृथ्वीराज प्रबंध में बताया गया है कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद कर लिया था और उनके सामने ही सिहासन लगाकर राज कार्य किया करता था पृथ्वीराज चौहान ने अपने मंत्री प्रतापसिंह से धनुष और बाण मंगाया प्रताप सिंह ने धनुष और बाण पृथ्वीराज चौहान को लाकर तो दे दिया पर इस बात की सूचना मोहम्मद गौरी को भी दे दी तो बाद में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को गड्ढे में डलवा कर मार दिया यानी कि पृथ्वी राज प्रबंध यह बताता है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद किया और कैद करने के बाद पृथ्वीराज चौहान की हत्या की और हसन निजामी का ताज उल हिंद भी यही कहता है कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को कैद किया और कैद करने के बाद ही उनकी हत्या की।
तो गोपीनाथ शर्मा जी यह बताते हैं कि इन दोनों की बातों में एक बात समान है कि पृथ्वीराज चौहान को पहले कैद किया गया था और कैद करने के बाद ही पृथ्वीराज चौहान की हत्या करवाई गई।
गोपीनाथ शर्मा इसके आगे कहते है कि ऐसा हुआ होगा कि पृथ्वीराज चौहान को आश्रित शासक बनाया गया होगा यानि मोहम्मद गोरी ने जीतने के बाद अजमेर को फिर से पृथ्वीराज चौहान को दे दिया होगा और तथा पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गौरी के अधीन रहते हुए शासन करने के लिए कहा गया होगा लेकिन जब पृथ्वीराज चौहान को यह बात अपमानजनक लगी कि वह मोहम्मद गोरी के अधीन रहते हुए शासन कर रहे हैं तो पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी की हत्या का षडयंत्र किया होगा जिसके कारण मोहम्मद गौरी को जब यह बात किसी सूत्र के द्वारा पता चली होगी तो मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की हत्या करवा दी।
अब प्रश्न यह उठता है कि पृथ्वीराज चौहान को यदि आश्रित शासक बनाया गया था तो इसका प्रमाण क्या है?
इसके लिए गोपीनाथ शर्मा एक प्रमाण प्रस्तुत करते है ।
गोपीनाथ शर्मा यह कहते है कि हमें मोहम्मद गौरी के समय अजमेर में चलाए गए सिक्के मिलते हैं उन सिक्को में एक और तो पृथ्वीराज चौहान का नाम अंकित है और एक ओर मोहम्मद साम का नाम अंकित है यानि कि एक ही सिक्के पर दोनों का नाम अंकित है।
यह इस बात की पुष्टि करता है कि पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गौरी के आश्रित शासक के रूप में रहे होंगे इसके अलावा गोपीनाथ शर्मा यह तर्क भी देते हैं कि बाद में हम यह जानते हैं कि मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान के पुत्र गोविंद राज को आश्रित शासक बनाया था।
तो इन्हीं के कारण से गोपीनाथ शर्मा यह कहते है कि पृथ्वीराज चौहान को कैद किया गया था तथा कैद करने के बाद पृथ्वीराज चौहान की हत्या की गई थी।
(परन्तु मेरा यह प्रश्न है कि क्या सिर्फ सिक्कों पर मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान का नाम एक साथ अंकित होने पर इस बात को प्रमाणित किया जा सकता है कि पृथ्वीराज चौहान को आश्रित शासक बनाया गया होगा? हो सकता है मोहम्मद गौरी को इस बात का डर हो कि अजमेर या पृथ्वीराज चौहान के राज्य की प्रजा उसके खिलाफ विद्रोह ना कर दे क्योंकि पृथ्वीराज चौहान एक लोकप्रिय शासक थे और इसी विद्रोह के डर के कारण मोहम्मद गोरी ने सिक्कों पर उसके नाम के साथ साथ पृथ्वीराज चौहान के नाम को भी अंकित करवाया होगा ताकि वह प्रजा के दिल में जगह बना सके।)
अफगानिस्तान के गजनी शहर में गौरी की कब्र और पृथ्वीराज चौहान की समाधि का सच
The truth of Gauri's tomb and Prithviraj Chauhan's tomb in Ghazni city of Afghanistan
परंतु यदि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु गजनी में हुई तो फिर गजनी (अफ़ग़ानिस्तान) में पृथ्वीराज चौहान की समाधि और मोहम्मद गौरी की कब्र पास पास कैसे हो सकती है? अफ़ग़ानिस्तान के लोग क्यों अपने बादशाह की कब्र एक हिन्दू काफिर के पास बनवाएंगे ?(पृथ्वीराज चौहान की समाधि के ऊपर खुदे हुए अक्षरों में उन्हें दिल्ली का हिंदु काफिर राजा बताया गया है)
और क्यो वहां के लोग गौरी की कब्र पर जाने से पहले पृथ्वीराज चौहान की समाधि का अपमान करते है?
जाहिर है पृथ्वीराज चौहान ने कुछ ना कुछ नुकसान तो किया ही होगा, परंतु क्या?
इतिहासकारों के मुताबिक पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद भी मोहम्मद गौरी जीवित था परन्तु प्रश्न ये है कि पृथ्वीराज चौहान ने आखिर ऐसा किया क्या था जो अफगानिस्तान के लोग पृथ्वीराज चौहान की समाधि का अपमान करते है?
प्रश्न महत्वपूर्ण है, मुश्किल भी है क्योंकि इतिहास की किसी भी पुस्तक में इसका कोई सीधा जवाब नहीं मिलता है।
बहुत शोध करने के बाद मै ऊपर दिए गए निष्कर्षों से उत्पन्न कुछ प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करता हूं। ये निष्कर्ष मेरे शोध, कुछ ऐतिहासिक तथ्य, लॉजिकल सोच, और अनुमान पर आधारित है।
'पृथ्वीराज रासो', 'पृथ्वीराज विजयम्' के तथा भारतीय मान्यताओं के अनुसार मोहम्मद गोरी, पृथ्वीराज को बन्दी बनाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के गजनी शहर ले गया था, जहाँ उसने पृथ्वीराज चौहान को कैद में रखने के दौरान उन्हें अँधा करवा दिया था।
इसके बाद चंदबरदाई की मदद से पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को अपने बाणों से मार डाला था। जिसके बाद चंदबरदाई ने नृशंस हत्यारों के हाथों में जाने से पहले पृथ्वीराज चौहान और खुद पर खंजर से वार किया और दोनों ने गजनी में ही वीरगति को प्राप्त किया।
आधुनिक इतिहासकारों ने ठोस प्रमाणों के आधार पर मोहम्मद गौरी की कब्र को पाकिस्तान के झेलम में होना बताया है। तो प्रश्न यह उठता है कि यदि मोहम्मद गोरी की कब्र पाकिस्तान के झेलम में है तो गजनी में पृथ्वीराज चौहान की समाधि के पास किसकी कब्र है जिसका वहां के लोगों के द्वारा अपमान किया जाता है?
अगर अजमेर में पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गई होती तो गजनी में गौरी की कब्र और सम्राट पृथ्वीराज चौहान की समाधि पास-पास नहीं होती।
गजनी में भी एक काफिर हिंदू राजा के द्वारा सुल्तान गौरी की हत्या किए जाने की मान्यता बहुत मजबूत है। कंधार विमान अपहरण मामले में जब तत्कालीन विदेश मंत्री 'जसवंत सिंह' अफगानिस्तान गए थे, उस समय वहां की सरकार के तालिबान अधिकारियों द्वारा उन्हें गजनी में गौरी की कब्र और पृथ्वीराज चौहान की समाधि बारे में सूचित किया गया था।
इससे सिद्ध होता है कि पृथ्वीराज चौहान तराइन के युद्ध में नहीं बल्कि गजनी में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
तो फिर मोहम्मद गौरी की मौत कैसे हुई?
Then how did Mohammad Ghori die?
गौरी के मरने के बाद चंदबरदाई को यह अच्छी तरह पता था कि गौरी के सैनिक पृथ्वीराज चौहान और उनके साथ क्या करेंगे।
इसलिए चंदबरदाई ने पहले पृथ्वीराज चौहान को कटार घोपकर उन्हें कष्ट से मुक्ति दिलाई और बाद में स्वयं ने भी कटार घोपकर वीरगति प्राप्त की।
उस समय के मुस्लिम इतिहासकारों ने इस घटना पर पर्दा डालने की बहुत कोशिश की। अगर अजमेर में पृथ्वीराज चौहान की हत्या की गई होती तो गजनी में पृथ्वीराज चौहान की समाधि गजनी में नहीं होती।
बड़े भाई की मृत्यु के बाद शहाबुद्दीन गौरी ने सन् 1202 से 1206 तक शासन किया। सन् 1206 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अज्ञात कारणों की वजह से शहाबुद्दीन गौरी की मृत्यु हो गई थी।
बाद में जनश्रुति और तथ्य मिल जाने की वजह से आधुनिक इतिहासकार भी भ्रमित हो गए और तथ्यों का ठीक ढंग से वर्णन नहीं कर सके।
यद्यपि जयचंद ने शहाबुद्दीन गौरी को भारत आने का निमंत्रण नहीं दिया था परन्तु यदि जयचंद ने अपनी ईर्ष्या त्यागकर पृथ्वीराज चौहान का साथ दिया होता तो भारत में मुगल साम्राज्य कभी भी अपने पैर नहीं जमा पाता।
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बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteसटीक जानकारी
Thank u
ReplyDeleteआप के अनुसार जनता के डर से गौरी ने सिक्को पर पृथ्वी का नाम लिखवाया जनता पहले से ही मुस्लिम शासकों से नफरत करती थी और गौरी को भी ये बात अच्छे से पता रही होगी और गौरी भारत खजाना लूटने के लिए आया था तो उसका अजमेर पर सासन वाली बात गलत ही मानी जायेगी वो पृथिवी को हराया था और पृथिवी ने गौरी की हत्या की हैं ये प्रमाणित नहीं है और कविता को इतिहास का स्रोत नहीं माना जा सकता क्योंकि मुस्लिम इतिहास कार अपनी धर्म के सासको को बड़ा चढ़ा कर दिखाते हैं तो हो सकता चंदर बरदाई ने भी यही किया हो और इतिहास स्रोत पर लिखा जाता हैं तो स्रोत जिधर जिस बात का एशरा करेंगे वही मनना होगा और हमारे धर्म के लोगो ने राजाओं ने अपना इतिहास लिखवाने पर कभी जोर ही नहीं दिया तो हमे उनका इतिहास मानना ही पड़ेगा क्योंकि भारत का इतिहास भारत के किसी आदमी ने नहीं लिखा है विदेशियों ने लिखा है
ReplyDeleteThanks for your comment. I respect your point of view but as far as this post is concerned I have given all the references inside the post and in the last I have also mentioned that we can not say 100% what would have happened but I tried my best to get close to the truth:)
DeleteThanks
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