महाराणा प्रताप की ताई मीरा बाई की कहानी । Meerabai story in Hindi or Meerabai history in Hindi

महाराणा प्रताप की ताई मीरा बाई की कहानी । Meerabai story in Hindi or Meerabai history in Hindi

 

मीरा बाई की कहानी(मीराबाई का इतिहास -जीवनी) । 

Story of Meerabai in Hindi-Meerabai history (Meerabai biography) in Hindi-Meerabai in Hindi


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मीराबाई का प्रारंभिक जीवन और मीरा बाई का विवाह

Meera Bai's early life and Meera Bai's Marriage in Hindi


कृष्ण भक्त मीराबाई का जन्म सन 1498 में कुड़की में एक राजपूत परिवार में हुआ था जो कि अभी राजस्थान के पाली जिले में आता है।

मीराबाई के पिता का नाम राठौर रतन सिंह था। मीराबाई के पिता राठौर रतन सिंह मेड़ता के महाराजा के छोटे भाई थे| मीराबाई की माता जी का नाम कुसुम कुंवर था वह टांकनी राजपूत थी। मीरा बाई के नाना जी का नाम कैलन सिंह था।



मीराबाई अपने पिता की एकमात्र संतान थीं। मीराबाई को अपनी कृष्ण भक्ति के कारण जीवन भर बहुत से कष्टों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

जब मीराबाई 3 वर्ष की थी तब इनके पिताजी का निधन हो गया था तथा जब ये 10 वर्ष की हुई तब इनकी माताजी का भी निधन हो गया था।

इनकी माता का निधन होने के बाद मीराबाई के दादा राव दूदा इन्हे मेड़ता ले आए और बहुत ही प्रेम पूर्वक मीराबाई का पालन पोषण किया। 

राव दूदा भी मीराबाई की तरह एक भक्त-हृदय व्यक्ति थे इस कारण राव दूदा के यहां हमेशा ही धार्मिक व्यक्तियों और साधु संतों का आना जाना लगा रहता था। इसी वजह से मीराबाई बचपन से बहुत ही आध्यात्मिक व्यक्ति थी तथा संगीत में भी बहुत रूचि रखती थी। 

जब मीराबाई छोटी थी तब मीराबाई के घर के पास एक बारात आई। बारात को देखने के लिए आसपास की सभी स्त्रियाँ छत पर खड़ी हो गई। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर मौजूद थीं। 

बारात को देखने के बाद मीरा बाई ने अपनी दादी से पूछा कि "मेरा दूल्हा कौन है?" इस पर मीराबाई की दादी ने मज़ाक में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि "यही है, मीरा तेरा दूल्हा"।

यह बात मीराबाई के बचपन से उनके मन में गाँठ की तरह बैठ गई और  वे कृष्ण को ही अपना सब कुछ समझने लगीं।

मीराबाई बचपन से ही संगीत में बहुत रुचि रखती थी तथा इसी कारण उन्हें बचपन में ही प्रसिद्धि मिलने लगी।

इस समय मेवाड़ के महाराजा राणा संग्राम सिंह या राणा सांगा थे।

राणा सांगा एक बहुत ही वीर राजपूत योद्धा थे राणा सांगा के शरीर पर 80 जख्मों के निशान थे तथा इन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना एक हाथ, एक आंख,और एक पैर खो दिया था परंतु इसके बाद भी राणा सांगा शत्रुओं से घमासान युद्ध करते थे।

मीराबाई के गुणों तथा प्रतिभा की बात मेवाड़ के महाराजा राणा संग्राम सिंह तक भी पहुंची और राणा सांगा ने देर न करते हुए मीराबाई के लिए अपने बड़े बेटे भोजराज का विवाह का प्रस्ताव भेज दिया।

मीराबाई के परिवार ने तो यह रिश्ता तुरंत स्वीकार कर लिया पर इस विवाह के लिए मीराबाई बिल्कुल भी राजी नहीं थी, परन्तु परिवार वालों के अत्यधिक दबाव के कारण मीराबाई को तैयार होना पड़ा।

अपनी विदाई के समय मीराबाई फूट-फूट कर रोने लगी तथा अपने साथ भगवान कृष्ण की वही मूर्ति ले गई जिसे उनकी दादी ने उनका दूल्हा बताया था।

मीराबाई के पति भोजराज 

Meera Bai's husband Raja Bhojraj in Hindi

मीराबाई के पति भोजराज बहुत ही समझदार व्यक्ति थे और वे मीराबाई का बहुत ध्यान रखते थे। भोजराज खुद भी एक शिव भक्त थे इसी कारण वह मीराबाई की भक्ति का भी बहुत सम्मान करते थे और मीराबाई की भक्ति के लिए अपना आदर बताने के लिए भोजराज ने चित्तौड़गढ़ में गिरधर गोपाल का मंदिर भी बनवाया था और आज भी यह मंदिर मौजूद है।

दुर्भाग्य से विवाह के सात वर्ष बाद ही मीराबाई के पति भोजराज का दुखद निधन हो गया और यही से मीराबाई का जीवन पूरी तरह बदल गया।

पति की मृत्यु के बाद ससुराल में मीराबाई को प्रताड़ित किया जाने लगा। 

सन् 1527 ई. में बाबर और राणा सांगा के मध्य एक भीषण युद्ध हुआ जिसमें मीरा बाईं के पिता रत्नसिंह मारे गए और लगभग इसी समय ससुर राणा सांगा की भी मृत्यु हो गई। 

राणा सांगा की मृत्यु के पश्चात मीरा बाई के पति भोजराज के छोटे भाई रत्नसिंह राजगद्दी पर विराजमान हुए। सन् 1531 ई. में राणा रत्नसिंह की भी मृत्यु हो गई और इनके सौतेले भाई विक्रमादित्य ने राज्य की बागडोर संभाली।

मीराबाई को मारने की कोशिश क्यो की गई ? 

The reason behind the attempt to kill Meerabai in Hindi

राजगद्दी संभालने के बाद विक्रमादित्य ने मीराबाई को बहुत अधिक कष्ट दिए और प्रताड़ित किया।

विक्रमादित्य को मीराबाई का साधु संतों के साथ उठना बैठना बिल्कुल पसंद नहीं था इसके साथ साथ मीराबाई ने एक बार कुलदेवी की पूजा करने से मना कर दिया था क्योंकि उन्होंने तो भगवान कृष्ण को ही अपना सबकुछ मान लिया था।

इन सब कारणों से विक्रमादित्य मीराबाई से बहुत नाराज रहने लगे और और दो बार मीराबाई को मारने का प्रयास भी किया गया।

पहली बार में मीराबाई को मारने के लिए एक फूल की टोकरी के अंदर सर्प रखकर भेजा गया और दूसरे प्रयास में मीराबाई को विष का प्याला दिया गया पर दोनों ही प्रयासों में मीराबाई का बाल भी बांका नहीं हुआ।

Meera Bai original photo

चित्तौड़गढ़ के इस कृष्ण मंदिर में मीराबाई भगवान कृष्ण की इसी मूर्ति की पूजा किया करती थी तथा इसी मंदिर में मीराबाई को जहर दिया गया था

इस अत्याचार के बाद मीरा बाई अपने ससुराल चित्तौड़ को छोड़ अपने मायके मेड़ता आ गई। मीराबाई के मेड़ता आ जाने के बाद से चित्तौड़ में अकाल पड़ने लगा।

सन 1534 ई. में गुजरात के आक्रमणकारी बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया तथा विक्रमादित्य मारे गए तथा तेरह सहस्र महिलाओं ने जौहर किया।

इसके बाद महाराजा उदय सिंह राजगद्दी पर विराजमान हुए। चित्तौड़ पर एक के बाद एक समस्या आने के कारण उन्होंने एक ब्राह्मण देवता से सलाह ली।

तब वहां के एक ब्राह्मण देवता ने उदय सिंह से कहा कि मीराबाई को चित्तौड़ वापस बुलाना होगा तभी चित्तौड़ का कल्याण होगा। 

चित्तौड़ के राजपरिवार ने इस पर मंथन किया और उन्हीं ब्राह्मण देवता से मीराबाई को वापस लाने का निवेदन किया।

मीराबाई की मृत्यु कैसे हुई ( मीराबाई का भगवान कृष्ण मे विलीन होना) 

How did Meerabai die in Hindi

महाराजा उदय सिंह के आदेश पर ब्राह्मण देवता मेड़ता पहुंचे परंतु ब्राह्मण देवता के मेड़ता पहुंचने के कुछ दिन पहले ही मीराबाई पुष्कर चली गई थी फिर उसके बाद मीराबाई वृंदावन होते हुए अंततः द्वारका पहुंची।

ब्राह्मण देवता भी मीराबाई को चित्तौड़ वापस लाने के लिए द्वारका पहुंच गए।

ब्राह्मण देवता ने मीराबाई को हर तरह से मनाने का प्रयास किया और उनसे चित्तौड़ वापस चलने का निवेदन किया।

ब्राह्मण देवता को विनम्रता पूर्वक उत्तर देते हुए मीराबाई ने कहा कि मैं ऐसे ही नहीं चल सकती इसके लिए मुझे अपने गिरधर गोपाल की आज्ञा लेनी होगी।

उस समय द्वारका मे 'कृष्ण जन्माष्टमी' के आयोजन की तैयारी चल रही थी तथा उस दिन भगवान कृष्ण का उत्सव चल रहा था। सभी भक्त गण भगवान कृष्ण के भजन मे मग्न थे। 

इसी के बीच मीराबाई ने श्री रनछोड़राय जी के मन्दिर के गर्भग्रह में प्रवेश किया और मन्दिर के कपाट को उन्होंने अंदर से बन्द कर दिया। जब द्वार खोले गये तो देखा कि मीराबाईं वहाँ नहीं थी। 

उनका चीर मूर्ति के चारों ओर लिपटा हुआ था और भगवान कृष्ण की मूर्ति अत्यन्त प्रकाशित हो रही थी। ऐसा माना जाता है कि मीराबाई मूर्ति में ही समा गयी थीं। मीराबाई का शरीर भी कहीं नहीं मिला।


Dwarka mandir where Meera Bai died
द्वारकाधीश मंदिर


मीरा बाई की मृत्यु के संबंध में एक ओर तथ्य प्रचलित है। 

जिसके अनुसार जब मीराबाई ब्राह्मण देवता से आज्ञा लेकर द्वारकाधीश के गोमती घाट पर पहुंची तो वहां पहुंचने के बाद मीराबाई ने भगवान कृष्ण के मंदिर में दर्शन किए और दर्शन करने के बाद मीराबाई अपने दोनो हाथो को जोड़कर और भगवान कृष्ण का ध्यान करते हुए जलमग्न होने लगी।

कुछ लोगों ने मीराबाई के पल्लू को पकड़कर उन्हें खींचने की कोशिश की पर इतनी देर में मीराबाई जलमग्न हो गई। 


Gomti ghat dwarka where Meera Bai died
 द्वारका घाट  

मीराबाई की मृत्यु इन दोनों में से किसी भी प्रकार से हुई हो पर इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि भगवान कृष्ण के लिए उनके मन में कितना प्रेम था, भले ही इसके लिए उन्हें जीवन भर कितना ही कष्ट क्यों ना सहना पड़ा हो।

मीराबाई का वह पल्लू या चीर आज भी द्वारकाधीश की मूर्ति के पास रखा हुआ है।

मीराबाई को एक स्त्री होने के कारण,  विधवा होने के कारण तथा चित्तौड़ के राजपरिवार की कुलवधू होने के कारण जितना अन्याय सहना पड़ा उतना शायद ही किसी अन्य भक्त को अपनी भक्ति के लिए सहना पड़ा हो। 

मीराबाई और महाराणा प्रताप के बीच का संबंध 

Relation between Meera Bai and Maharana Pratap in Hindi

महाराणा प्रताप के पिता महाराजा उदय सिंह थे और मीराबाई, उदय सिंह के बड़े भाई भोजराज की पत्नी थी इस प्रकार मीराबाई रिश्ते में महाराणा प्रताप की बड़ी मां या ताई लगती थी।

एक बार जब महाराणा प्रताप अपने प्रियजनों की मृत्यु के कारण युद्ध से विरक्त हो गए थे तो मीराबाई ने उन्हें अपने कर्तव्यपथ की ओर मोड़ा तथा उन्हें हौसला और मानसिक संबल प्रदान किया। 

महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह का मानना था की मीराबाई के मेवाड़ छोड़ देने के बाद ही उनके राज्य पर एक के बाद एक संकट आते गए।

मीरा बाई के समय जो समाज था उस समाज ने मीराबाई को एक विद्रोहिणी माना क्योंकि समाज का ऐसा मानना था कि उनकी गतिविधियां एक राजपूत राजकुमारी और विधवा के लिए स्थापित नियमों के अनुसार नहीं थी।

मीरा बाई अपना अधिकांश समय कृष्ण को समर्पित कर देती थी और भक्ति पदों की रचना किया करती थीं।

मीराबाई ने अपने जीवन काल में भगवान कृष्ण के लगभग एक हजार भजनों की रचना की | मीराबाई के सारे भजन व भक्ति गीत आज भी प्रासंगिक है |

मीराबाई से अकबर क्यों मिला?

Why did Akbar meet Meerabai in Hindi?

मीराबाई बचपन से ही भगवान कृष्ण को अपना सब कुछ मानती थी। मीराबाई के ससुराल वालों को मीराबाई का कृष्ण भक्ति में नाचना और गाना बिल्कुल पसंद नहीं था। 

मीराबाई साधु संतों के साथ कीर्तन करती रहती थी और मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने घंटों मगन रहती थी।

मीराबाई की इसी भक्ति ने अनगिनत कविताओं और गीतों को जन्म दिया जो मीराबाई द्वारा ही रचित की गई थी। मीराबाई की कविताएं धीरे-धीरे पूरे भारत में प्रसिद्ध होने लगी। 

मीराबाई द्वारा रची गई कृष्ण भक्ति की कविताओं और मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने सुरीली आवाज में कीर्तन करने की प्रशंसा अकबर को सभी जगह से मिलने लगी।

यही कारण था कि अकबर, मीराबाई से मिलने का इच्छुक हुआ। 

लेकिन अकबर का मीराबाई से मिलना इतना आसान नहीं था क्योंकि मीराबाई के पति भोजराज और मुगल सम्राट अकबर के बीच अच्छे संबंध नहीं थे दोनों एक दूसरे के शत्रु थे और अकबर के लिए शत्रु की पत्नी से मिलना असंभव था। 

लेकिन फिर अकबर ने यह फैसला किया कि वह मीराबाई से एक शहंशाह के भेष में नहीं बल्कि एक आम इंसान के रूप में मिलेगा।

इसके बाद अकबर अपने शाही दरबार के नवरत्नों में से एक तानसेन के साथ भगवान कृष्ण के मंदिर में सन्यासी के भेष में जा पहुंचा जहां मीराबाई अक्सर भजन कीर्तन किया करती थी।

भगवान श्री कृष्ण के मंदिर में मीराबाई की सुरीली आवाज में भजन-कीर्तन सुनने के लिए बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे फिर मीराबाई ने जैसे ही अपनी मधुर आवाज में गाना शुरू किया सभी श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए और सुरीली आवाज का आनंद लेने लगे। 

स्वयं तानसेन और अकबर भी खुद को रोक ना सके कुछ देर बाद अकबर अपने स्थान से उठा और उसने हीरे मोती से जड़ा हुआ एक हार मीराबाई के सामने रखी भगवान कृष्ण की मूर्ति को अर्पित कर दिया इसे देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। 

लोगों की शक भरी नजरों से बचते हुए अकबर और तानसेन मंदिर से चले गए, बाद में छानबीन करने से मालूम हुआ कि वह दोनों सन्यासी नहीं थे बल्कि वह  अकबर और तानसेन थे।

मीराबाई का कवि तुलसीदास जी को पत्र 

Meera Bai's letter to Tulsidas


श्री कृष्ण भक्त मीरा बाई ने हिन्दी महान कवि तुलसीदास जी को अपनी पीड़ा बताते हुए एक पत्र लिखा था, जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है –


Meera bai letter to Tulsidas


इस पत्र के द्वारा मीराबाई ने कवि तुलसीदास जी से कहा था कि, मुझे अपने परिवार वालों के द्वारा श्री कृष्ण की भक्ति छोड़ने के लिए बहुत ही परेशान किया जा रहा है, परन्तु मै भगवान श्री कृष्ण को अपना सब कुछ मान चुकी हैं, वे मेरी आत्मा और मेरे शरीर के रोम-रोम में बसे हुए हैं।

नंदलाल कृष्ण को छोड़ना मेरे लिए अपनी देह त्यागने के समान ही है, कृपया ऐसी दुविधा से बाहर निकालने के लिए मुझे सलाह दें, और मेरी सहायता करें। 

जिसके बाद  तुलसी दास ने मीराबाई के पत्र का कुछ इस तरह उत्तर दिया था –


Tulsidas letter reply to meerabai



अर्थात तुलसीदास जी ने मीराबाई से कहा कि
"जिस प्रकार भगवान विष्णु की भक्ति के लिए प्रहलाद को अपने पिता को छोड़ना पड़ा, श्री राम की भक्ति के लिए विभीषण ने अपने भाई रावण को छोड़ा, बाली ने अपने गुरु को छोड़ा तथा गोपियों ने अपने प्रिय पतियो को छोड़ा उसी तरह आप भी अपने परिवार वालों को छोड़ दो जो आपको और भगवान श्री कृष्ण के प्रति आपकी अटूट आस्था और भक्ति को नहीं समझ सकते।"

भगवान और भक्त का रिश्ता बहुत ही अलग होता है, जो हमेशा अजर-अमर रहता है और तुलसीदास जी ने इस पत्र में दुनिया के सभी संसारिक बंधनों को एक मिथ्या बताया था।

मीराबाई के गुरु संत रविदास

Meera Bai's guru Saint Ravidas in Hindi


मीराबाई तथा उनके गुरु रविदास जी की कोई ज्यादा मुलाकात हुई हो इस बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलता है।

ऐसा कहा जाता है कि मीराबाई अपने आदरणीय गुरु रविदास जी से मिलने बनारस जाया करती थी। 

संत रविदास जी से मीराबाई की मुलाकात बचपन में किसी धार्मिक कार्यक्रम में हुई थी।

इसके साथ ही कुछ किताबों और विद्वानों के मुताबिक संत रविदास जी मीराबाई के अध्यात्मिक गुरु थे। मीराबाई जी ने अपनी की गई रचनाओं में संत रविदास जी को अपना गुरु बताया है।

मीराबाई के गुण

Qualities of Meerabai


मीराबाई एक अच्छी गायक होने के साथ-साथ बहुत से वाद्य यंत्रों पर भी अपनी पकड़ रखती थी। मीराबाई जब भी अपनी सुरीली आवाज में भजन गाती थी तो सभी लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

मीराबाई बहुत ही कोमल ह्रदय थी और अपने मन में गरीबों के प्रति बहुत दया भाव रखती थी। मीराबाई को जब भी किसी मंदिर के बाहर कोई गरीब दिख जाता था तो उसे कुछ ना कुछ दान या भोजन सामग्री अवश्य दिया करती थी तथा इसके साथ साथ अगर कोई बीमार निसहाय व्यक्ति दिख जाता था तो मीराबाई उसकी सेवा करने का हर संभव प्रयास करती थी।


Meerabai in Hindi

मीराबाई  बुद्धिमान और साहसी थी। एक बार जब मीरा बाई वृंदावन में थी तो वहां मीराबाई के सामने एक ब्रह्मचारी आ गया और मीराबाई को देखते हुए ब्रह्मचारी बोला कि मैं स्त्री का मुंह देखना पसंद नहीं करता तब मीराबाई ने कहां "वाह महाराज अभी तक आप स्त्री पुरुष में ही उलझे हैं अर्थात समदृष्टि नहीं हुए हैं तो फिर आप स्वयं को कैसे ब्रह्मचारी बोल सकते हैं?"
 
इसी प्रकार एक दूसरी घटना में मीराबाई के ससुर राणा सांगा को किसी व्यक्ति ने एक खत भेजा था उसमें एक जगह "सा" शब्द हींगलू में लिखा था जिसका मतलब किसी को समझ में नहीं आया बड़े-बड़े ज्ञानवान लोगों से भी उसका मतलब पूछा पर कोई मतलब नहीं बता पाया। जब राणा सांगा ने यह पत्र मीराबाई के पास भेजा तो उस पत्र को देखते ही मीराबाई ने कह दिया इस "सा" को लालसा पढ़ना चाहिए, जिस भी व्यक्ति ने इस शब्द का प्रयोग किया है वह अपनी इच्छा जाहिर करना चाहता है।
राणा सांगा मीराबाई की विलक्षणता से बहुत खुश हुए और तुरंत उस व्यक्ति को लिख दिया कि जैसे आपको मुझसे मिलने की लालसा है वैसे ही हमको भी आपसे मिलने की लालसा है।

मीराबाई द्वारा रचित ग्रंथों के नाम 

Texts composed by Mirabai in Hindi


राग गोविंद


राग सोरठ के पद


बरसी का मायरा


गीत गोविंद टीका


इसके अतिरिक्त "मीराबाई की पदावली" नामक ग्रंथ में मीराबाई के गीतों का संग्रह किया गया हैl

मीराबाई कोट्स हिंदी में

Meerabai quotes in Hindi



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प्यार को कभी नही भूलना चाहिए, यह आपके अंदर वो जुनून लाएगा जो आपको ब्रह्मांड में खुद को साबित करने के लिए चाहिए।


Meerabai quotes in Hindi

 


#

कुछ मेरी प्रशंसा करते हैं कुछ मुझे दोष देते हैं पर मैं तो हमेशा दूसरी तरफ ही जाती हूं।


Meerabai quotes in Hindi



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मुझे दुख का इलाज पता है, 

अपने हाथों को कुछ ऐसा छूने दें, 

जिससे आपकी आंखें मुस्कुराएं।


Meerabai quotes in Hindi



#

यदि फल और जल पर रहना श्रेष्ठ है तो बंदर और मछलियाँ मनुष्यों से पहले स्वर्ग में जाएँगी।


Meerabai quotes in Hindi



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हे मेरे साथी सांसारिक सुख एक भ्रम है जैसे ही आप इसे प्राप्त करते हैं यह चला जाता है।


Meerabai quotes in Hindi




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मैं चीजों की जड़ तक गई पर गोविंद के अलावा मुझे कुछ नहीं मिला।


Meerabai quotes in Hindi



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जिनको चाकू लगा है वो ही घाव को समझ सकते हैं,

और एक जौहरी ही गहनों का स्वभाव

 जान सकता है।


Meerabai quotes in Hindi



#

मैंने प्यार की एक लता लगाई थी और उसे धीरे-धीरे इसे अपने आँसुओं से सींचा, 

अब यह बड़ी हो गई है और मेरे घरों में फैल गई है।


Meerabai quotes in Hindi



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जब हमारे पास हमारे साथ के लिए खुद भगवान है,

तो हम दुखी कैसे रह सकते है।


Original Meerabai quotes in Hindi



#

ज्ञान स्वयं को ही प्राप्त और महसूस होता है,

लेकिन प्रेम स्वयं भगवान द्वारा महसूस किया जाता है।


Quotes on Meerabai in Hindi



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इस जगत में कुछ भी हमारा नहीं है, सिवाय भगवान के।

सिर्फ भगवान ही हमारे साथ रहते है।


Meerabai quotes in Hindi



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पूरा ब्रह्मांड प्यार से बना है, 

प्रत्येक परमाणु, प्रत्येक कोशिका, प्रत्येक कण। 

इस प्रेम को बहुत कम लोग अनुभव कर पाते हैं,

पर जो यह अनुभव कर पाते हैं,

सिर्फ वे ही जानते है वास्तव में वो कौन हैं।


Meerabai quotes in Hindi



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जब आप सबसे बुरे दर्द का अनुभव करते हैं, तभी आप ये अच्छे से जान सकते है कि आनंद क्या होता है, 

सबसे खराब और दर्द भरे चेहरों में ही, अक्सर इस जगत के निर्माता प्रकट होते है।


Meerabai quotes in Hindi



#

जितना अधिक बातो को आप जाने देने और आत्मसमर्पण करने में सक्षम होते हैं, उतना ही अधिक परमात्मा आपके जीवन में चमत्कार कर सकता है,

या तो आप जाने दें, 

या रुकें और दुख को भोगते रहे।


Meerabai quotes in Hindi



मीराबाई भजन लिस्ट - Top मीराबाई भजन

(Meerabai bhajan list in Hindi - Top 5 Meerabai bhajan in Hindi - Best Meerabai bhajan in Hindi)





  • मीरा बाई एकली खड़ी

  • मोहन आवो तो सही

  • एरी मैं तो प्रेम दीवानी

  • हरि तुम हरो जन की पीर 

  • प्रभु कब रे मिलोगे 

  • पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे 

  • पायो जी मैंने राम रतन धन पायो

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