गोरा और बादल की कथा(कहानी) । गोरा और बादल का इतिहास
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गोरा और बादल राजपूत इतिहास के सबसे वीर सेनापतियों में गिने जाते है। आज इस पोस्ट में आप उनकी वीरता को जान पाएंगे। धन्य हो भारत माता और राजस्थान की वीर भूमि जहां इन दो शूरवीरों ने जन्म लिया।
गोरा बादल कौन थे?
गोरा और बादल न तो राजा थे और न ही सम्राट न बादशाह।
साहस और वीरता पर एकाधिकार किसी राजा को ही हो यह जरूरी नहीं है। जरा सोचिए उन भावनाओं का शिखर जहां सेनापति अपनी गर्दन कटवा ले और धड युद्ध लड़ता रहे।
चित्तौड़गढ़ का इतिहास राजपूताना मिसालों से भरा पड़ा है। लेकिन चित्तौड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह के सेनापति गोरा बादल की कथा कई महायुद्धो पर भारी पड़ने वाली कहानी है।
गोरा चित्तौड़गढ़ पर शासन करने वाले रावल रतन सिंह के सेनापति थे और बादल सेनापति गोरा के भतीजे थे।
ऐसा कहा जाता हैं कि युद्ध रणनीति बनाने में गोरा और बादल का कोई सानी नहीं था। चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा जिन सात अभैद्य दरवाजों पर टिकी थी, उनमें से दो, गोरा बादल थे।
इतिहास जिस तरह से गोरा के पराक्रम को याद करता है उसी तरह उनके भतीजे बादल को भी याद करता है।
बादल बचपन से ही अपने काका की तरह युद्ध कला में माहिर थे। महज 12 साल की उम्र में उन्होंने जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी।
युद्ध कला में महारत होना अलग बात है परंतु महाभारत के अभिमन्यु की तरह मुश्किल हालात में अपने शौर्य को साबित करना किसी भी योद्धा के लिए मुश्किल होता है। बादल के लिए अग्निपरीक्षा का समय आ गया था।
बादल को अग्नि परीक्षा क्यों देनी पड़ी इसके लिए चित्तौड़गढ़ के इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। चित्तौड़गढ़ के राजा रावल रतन सिंह ने एक स्वयंवर में रानी पद्मावती से शादी की रानी पद्मिनी या पद्मावती के रूप और गुण के चर्चे आसपास के राज्यों में भी थे।
कौन था राघव चेतन जिसकी वजह से चित्तौड़गढ़ की बर्बादी की कहानी शुरू हुई ?
रावल रतन सिंह के दरबार में राघव चेतन नाम का एक संगीतज्ञ था। राघव चेतन तंत्र विद्या का भी ज्ञानी था। राघव चेतन महाराजा रावल रतन सिंह का राजपुरोहित बनना चाहता था राघव चेतन पंडित होने के साथ-साथ तंत्र मंत्र का भी साधक था। एक बार रावल रतन सिंह ने राघव चेतन को काला जादू करते हुए पकड़ लिया था।
रावल रतन सिंह तंत्र विद्या का बहुत विरोध करते थे उन्होंने राघव चेतन को इस कृत्य के लिए राज्य से बाहर निकालने के आदेश दे दिए। रावल रतन सिंह को क्या पता था कि जिस चेतन को वह सजा दे रहे हैं वही उनकी और चित्तौड़गढ़ की बर्बादी का कारण बनेगा।
राघव चेतन का प्रतिशोध
रावल रतन सिंह के द्वारा अपमानित करके निकाले जाने के कारण राघव चेतन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के पास जाता है ताकि वह दिल्ली के सुल्तान से हाथ मिला सकें, और चित्तौड़गढ़ पर हमला करवाकर अपने अपमान का बदला ले सके।
राघव चेतन, अलाउद्दीन खिलजी के बारे में अच्छे से जानता था, उसे पता था कि खिलजी दिल्ली के पास जंगल में रोज शिकार करने के लिए आता है। राघव, अलाउद्दीन खिलजी से मिलने के लिए बांसुरी बजाता रहता था। एक दिन किस्मत से खिलजी ने राघव चेतन की सुरीली बांसुरी की आवाज को सुन लिया और उसे अपने दरबार में बुलाया।
इस प्रकार राघव चेतन खिलजी के दरबार में पहुंचा और आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के सामने पद्मिनी के रूप और सौंदर्य की तारीफ करना शुरू कर दी।
रानी पद्मिनी की बारे में इस तरह की तारीफ सुनकर अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ और रानी पद्मिनी पर कब्जा करने की ठान ली।
इसके लिए अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने सबसे पहले चित्तौड़ के दुर्ग को घेरा परंतु चित्तौड़गढ़ दुर्ग की अभेद्य सुरक्षा के कारण वह कुछ हासिल न सका।
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी स्वयं चित्तौड़गढ़ दुर्ग के पास पहुंचा और रावल रतन सिंह को संधि प्रस्ताव भेजा कि वह दिल्ली वापस लौट जाएगा पर सिर्फ इस शर्त के साथ कि रतन सिंह रानी पद्मावती को एक बार देखने दे।
राजा रावल रतन सिंह ने खिलजी की शर्त को मंजूर कर लिया पर यह बात सेनापति गोरा को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। तब राजा रतन सिंह ने सेनापति गोरा से कहा की हर समय युद्ध नहीं होता कुछ जगह रणनीति और कूटनीति का भी इस्तेमाल किया जाता है।
अलाउद्दीन खिलजी का महल में प्रवेश
अलाउद्दीन खिलजी जब महल में आया तो रावल रतन सिंह ने उसे एक शीशे में रानी पद्मिनी की छवि को दिखाया। कहते हैं रानी पद्मिनी के सौंदर्य को देखकर अलाउद्दीन खिलजी का पागलपन और अधिक बढ़ गया।
रानी पद्मिनी को देखने के बाद अलाउद्दीन खिलजी उस समय तो महल से वापस लौट गया। अगले दिन चित्तौड़ दुर्ग के पास बने अपने कैंप से रावल रतन सिंह को एक संदेश भिजवाया कि वह कुछ संधि प्रस्तावों पर बात करना भूल गया था इस कारण बात को पूरी करने के लिए वह (रावल रतन सिंह) उसके कैंप में आये।
रावल रतन सिंह अलाउद्दीन खिलजी की यह चाल समझ नहीं पाए और कुछ चुनिंदा राजपूत सैनिकों के साथ वह अलाउद्दीन खिलजी के कैंप में पहुंच गए और अपनी पसंद को पाने में नाकमयाब होने की खीज में अलाउद्दीन खिलजी ने रावल रतन सिंह को धोखे से बंदी बना लिया।
बंदी बनाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती को संदेश भिजवाया कि अगर वह उसकी खिदमत में हाज़िर नहीं होगी तो रावल रतन सिंह का कटा हुआ सिर बहुत जल्द उनके पास पहुंच जाएगा।
गोरा और बादल का रानी पद्मावती को रावल रतन सिंह को छुड़ा लाने का वचन
गोरा बादल के साथ कुछ मतभेद होने के कारण रावल रतन सिंह ने उन्हें महल से निकाल दिया था। अभी स्थिति कुछ ऐसी थी कि रावल रतन सिंह को बंधक बना लिया गया था और रानी पद्मावती का सम्मान भी दांव पर था। इस विकट परिस्थिति को देख रानी पद्मावती ने अपने कुछ विश्वास पात्र लोगों को गोरा बादल को ढूंढने के लिए कहा।
कुछ समय तलाश के बाद गोरा बादल, रानी पद्मिनी को एक जंगल में मिल गए।
रानी पद्मिनी ने हाथ जोड़कर गोरा बादल से विनती की और कहा कि महाराजा रावल रतन सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की कैद से छुड़ाने के लिए उनकी मदद करें
गोरा बादल ने रानी पद्मावती से कहा आप बिल्कुल चिंता ना करें आप सिसोदिया कुल की महारानी है किसी भी हाल में हम महाराजा को वापस लाएंगे। इसके बाद गोरा और बादल ने राजा को छुड़वाने के लिए एक रणनीति तैयार की। एक बार फिर चित्तौड़ की सेना का नेतृत्व अब गोरा के हाथो में था।
सेनापति गोरा की अलाउद्दीन खिलजी पर सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति
गोरा ने 700 की संख्या में डोलिया बनवाई और इन 700 डोलियों में 700 सैनिक बैठाए गए और हर डोली को चार चार राजपूत सैनिक उठा रहे थे इसका मतलब लगभग 2800 वीर राजपूत जवानों ने अलाउद्दीन खिलजी पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की तैयारी कर ली थी।
इस तरह एक डोली में एक वीर के साथ चार वीर का हार बनकर खिलजी की सेना से दो दो हाथ करने के लिए राजपूत सैनिक तैयार हो गए।
गोरा ने अलाउद्दीन खिलजी को संदेश पहुंचवाया कि महारानी आने को तैयार है पर उसके लिए महारानी की एक शर्त है। यह संदेश सुनकर अलाउद्दीन खिलजी खुश हो गया और सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार हो गया।
गोरा और बादल का मातृभूमि और राज्य धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान
आखिरकार वह समय आ गया जब डोलिया लेकर राजपूत सैनिकों ने खिलजी के राज्य में प्रवेश किया।
जब गोरा बादल सेना के साथ खिलजी के दरबार के बाहर पहुंचे तो गोरा ने अलाउद्दीन खिलजी को एक संदेश भिजवाया कि महारानी एक बार महाराजा रतन सिंह मिलना चाहती है।
पहले से ही शर्त मानकर तैयार बैठे खिलजी ने हामी भर दी।
पद्मावती के भेष में डोली में बैठे लोहार को गोरा ने बंदी गृह भेजा। बंदी गृह पहुंचते ही लोहार ने महाराजा की बेड़ियां काट दी और उन्हें मुक्त करा लिया गया।
पहले से ही आदेश पर तैयार बैठी चित्तौड़ की राजपूत सेना अपने राजा को लेकर चित्तौड़ के लिए रवाना हो गई जब यह खबर खिलजी को लगी तो उसने रणभूमि में दुगनी सेना के साथ रतन सिंह को रोकने के लिए सेना भेजी।
रण का आभूषण ओढ़े गोरा और बादल तथा साथ में आए राजपूत सैनिक आर पार की लड़ाई के लिए तैयार हो गए और मैदान में खिलजी की सेना पर कहर बनकर टूट पड़े और इसी के साथ खिलजी की असंख्य सेना के सामने कुछ गिने-चुने राजपूत सैनिक पहाड़ बनकर खड़े हो गए।
गोरा और बादल की सेना का खिलजी के सेना से बहुत भीषण मुकाबला हुआ सैकड़ों की संख्या में आए राजपूत सैनिक असंख्य शत्रु सैनिकों पर भारी पड़ने लगे।
गोरा अपनी वीरता से खिलजी की सेना का संहार कर ही रहे थे इतने में खिलजी के एक सेनापति ने धोखे से गोरा के पीछे से हमला किया और अपनी तलवार से गोरा के सिर को धड़ से अलग कर दिया।
सिर कटने के बाद भी गोरा का धड खिलजी की सेना से लड़ता रहा और खिलजी के प्रमुख सेनापति जफर का सिर काटकर उसका शीश जमीन पर ला दिया इसके बाद ही इस महान राजपूत योद्धा के प्राण निकले।
चाचा गोरा के धड़ को भी लड़ते देख बादल ने और पराक्रम के साथ अलाउद्दीन खिलजी की सेना का संहार किया मगर हुआ वही जो हमेशा से होता रहा था, राजस्थान की लाज के लिए चित्तौड़ का एक ओर वीर न्योछावर हो गया।
इस प्रकार गोरा और बादल की यह रणनीति खिलजी पर भारी पड़ी और राजा रतन सिंह सकुशल वापस चित्तौड़गढ़ आ गए लेकिन गोरा और बादल की कथा रण के कण-कण में अमर हो गई।
गोरा और बादल को शत शत नमन,,🙏
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