हल्दीघाटी का युद्ध कौन जीता?

हल्दीघाटी का युद्ध कौन जीता?

 

who won Haldighati battle


हल्दीघाटी का युद्ध कौन जीता । Who won Haldighati battle (war) in Hindi

हल्दीघाटी का युद्ध किसने जीता इसका प्रामाणिक उत्तर आपको इस पोस्ट के अंत तक मिल जाएगा।  

इसके अलावा हल्दीघाटी युद्ध का आंखों देखा वर्णन जिसे बदायूंनी ने अपनी किताब में किया है, इस पोस्ट से आप वो वर्णन विस्तृत रूप से समझ पाएंगे।

मुगल शासक अकबर से वेतन प्राप्त करने वाला एक व्यक्ति बदायूंनी जो सन 1576 ईस्वी के हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान युद्ध स्थल पर मौजूद था। 

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यह स्वयं भी युद्ध कर रहा था और जिसके द्वारा बाद में हल्दीघाटी के युद्ध का आंखों देखा हाल लिखा गया।

एक किताब है "मुंतखब उल तवारीख" इसी किताब में बदायूनी ने हल्दीघाटी के उस युद्ध का पूरा आंखों देखा हाल लिखा है।

बदायूनी के द्वारा हल्दीघाटी के उस युद्ध के संबंध में क्या-क्या बातें बताई गई है उस पर चलते है।  

उसके पहले एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि जो भी बातें इस पोस्ट में बताई गई है मेरे निजी विचार नहीं है जैसा सोर्सेज(sources) में लिखा गया है उसे वैसा ही आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।

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प्रमुख स्तोत्र-

1)उदयपुर राज्य का इतिहास

2)मुंतखब उल तवारीख - बदायूनी

3)अकबरनामा - अबुल फजल

4)राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और अनुभवी इतिहासकार डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा

एक किताब है उदयपुर राज्य का इतिहास पार्ट वन जो गौरीशंकर हीराचंद ओझा के द्वारा लिखी गई है। इसी किताब में पेज नंबर 374, 375, 376, 377 पर अल बदायूनी के द्वारा लिखे गए "मुंतखब उल तवारीख" की बातों को हिंदी में वैसा का वैसा ही लिखा गया है जो बदायूनी ने हल्दीघाटी के युद्ध के संबंध में लिखी थी।

अल बदायूनी अकबर से वेतन प्राप्त करने वाला एक वेतन भोगी था।

जून 1576 में जब हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था उस समय स्वयं हल्दीघाटी के युद्ध स्थल पर बदायूनी मौजूद था और युद्ध में लड़ रहा था और इस युद्ध का आंखों देखा हाल बाद में इसके द्वारा मुंतखब उल तवारीख किताब में लिखा गया।

जैसा कि आपको पता ही होगा हल्दीघाटी का युद्ध जून 1576 में हुआ था और इस युद्ध में एक ओर मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप थे ओर दूसरी तरफ अकबर की शाही सेना या मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह कर रहे थे मान सिंह के अलावा अकबर की सेना में आसिफ खान भी था।

जब मानसिंह और आसिफ खान गोगुंदा से सात कोस दूर दर्रे के पास शाही सेना सहित पहुंचे तो राणा कीका अर्थात महाराणा प्रताप लड़ने के लिए आए। 

गोगुंदा वर्तमान में राजस्थान के उदयपुर जिले के अंतर्गत आता है और गोगुंदा से 7 कोस की दूरी पर एक दर्रा (पहाड़ी क्षेत्र में तंग रास्ता) आता है।

जैसे ही यह शाही सेना दर्रे के पास पहुंचती है उसी समय महाराणा प्रताप की ओर से हमला किया जाता है और उसी स्थान को हल्दीघाटी के नाम से जाना जाता है और यह हल्दीघाटी वर्तमान में राजस्थान के राजसमंद जिले में आता है।


Haldighati battle real place

दरअसल हल्दीघाटी दो पहाड़ियों के बीच एक पतली सी घाटी है। यहां मिट्टी का रंग हल्दी जैसा होने के कारण इसे हल्दीघाटी नाम दिया गया।

इतिहास के इस महत्वपूर्ण युद्ध की शुरुआत हल्दीघाटी के दर्रे से ज़रूर हुई थी पर पर पूरा युद्ध यहां नहीं लड़ा गया।


Haldighati battle real place
युद्ध की शुरुआत में इसी जगह पर महाराणा प्रताप की सेना मुुग़ल सेेना पर टूट पड़ी थी

इसके बाद बदायूनी ने शाही या मुगल सेना की स्थिति क्या थी इस बारे में बताया है।

मानसिंह मुगल सेना के सबसे मध्य में हाथी पर सवार थे और उनकी सुरक्षा के लिए कुछ लोग मौजूद थे।

मान सिंह को चारो ओर से मोहम्मद रफी, शियाबुद्दीन गुरोह, पायदाह कज्जाक, लूणकरण और अली मुराद सुरक्षा प्रदान कर रहे थे।

और बहुत से सैनिको को हरावल दस्ते से भी आगे रखा गया था। हरावल का मतलब होता है फ्रंटलाइन सोल्जर मतलब युद्ध में सबसे आगे जो सैनिक होते हैं उन्हें हरावल कहा जाता है। सैयद हाशिम बारहा के नेतृत्व में चुने हुए 80 लडाकों को हरावल दस्ते से आगे भेजा गया।

दाई (Right) और की सेना का नेतृत्व सैयद अहमद बारहा कर रहा था और बाएं (Left) तरफ की सेना का नेतृत्व काजी खान और सीकरी के शहजादे कर रहे थे।

राणा कीका अर्थात महाराणा प्रताप ने दर्रे के पीछे से 3000 राजपूतों सहित आगे बढ़कर अपनी सेना के दो भाग किए।

एक भाग जिसका नेतृत्व हकीम खां सूर अफगान कर रहा था आगे बढ़कर मुगल सेना के हरावल दस्ते पर आक्रमण किया।

भूमि ऊंची नीची, रास्ते टेढ़े मेढ़े और कांटे वाले होने के कारण हमारे हरावल दस्ते में हड़बड़ी मच गई जिससे हमारी पूरी तरह हार हुई। यह बात खुद बदायूनी ने स्वीकार की है।

इसके आगे बदायूनी लिखता है कि हमारी सेना के बायी (Left) ओर के मुगल सैनिक जिनका नेतृत्व राजा लूणकरण कर रहे थे, इस हमले से डरकर भेड़ों के झुंड की तरह दाई (Right) ओर भाग निकले।

इस समय मैं (बदायूनी) हरावल के कुछ खास सैनिकों के साथ था और मेरे साथ आसिफ खान भी थे (आसिफ खान भी मुगल सेना की ओर से लड़ रहा था)

मैंने(बदायूंनी) आसिफ खान से पूछा कि "हम तो बड़ी मुश्किल में फंस गए हैं क्योंकि हम तो पहचान ही नहीं पा रहे हैं कि हमारी तरफ से लड़ने वाले राजपूत सैनिक कौन है और शत्रु दल से लड़ने वाले राजपूत सैनिक कौन है?"

तब आसिफ खान ने यह कहा कि" तुम तो बेफिक्र होकर तीर चलाओ जिस भी तरफ का राजपूत मरेगा इसमें फायदा इस्लाम का ही होगा।"

और फिर आगे अल बदायूनी ने लिखा है कि "मुझे भी बहुत से काफिरों( गैर मुस्लिम) को मारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और भीड़ भी इतनी ज्यादा थी कि हमारा एक भी वार खाली नहीं गया।"

(इतिहास की किताबों में जिसे "महान अकबर" की उपाधि दी गई है उसके सैन्य अधिकरियों की मानसिकता से आप निष्कर्ष निकाल सकते है कि अकबर कितना महान था)

इस लड़ाई में बारहा के सैयदो तथा मुगल जवानो ने रुस्तम सी बहादुरी दिखाई(बदायूंनी अपनी सेना के बारे में बोल रहा है) 

दोनों तरफ से मरे हुए वीरों से युद्ध भूमि भर गई अर्थात सभी तरफ लाशें ही लाशें थी। 


rakt talai Haldighati
  रक्त तलाई तालाब, इसी जगह पर महाराणा प्रताप के वीर योद्धाओं का रक्त बारिश के पानी के साथ बहकर आया था

rakt talai talab haldighat

राणा कीका की सेना के दूसरे भाग ने जिसका नेतृत्व खुद महाराणा प्रताप कर रहे थे, घाटी से निकलकर काजी खान के नेतृत्व वाली सैन्य टुकड़ी पर जो की घाटी के द्वार पर थी, हमला किया।


Maharana pratap in Haldighati battle


और उसकी सेना का संहार करते हुए राणा कीका उसके मध्य पहुंच गए जिससे सब के सब सीकरी के शहजादे भाग निकले और उनके मुखिया शेख मंसूर खान जो शेख इब्राहिम (सीकरी का चिश्ती) का दामाद था, एक तीर ऐसा लगा कि बहुत दिनो तक उसका घाव नहीं भरा।

इसके बाद बदायूनी लिखता है कि काजी खान मुल्ला कुछ देर तक डटा रहा परंतु दाहिने हाथ का अंगूठा तलवार से कट जाने पर वह भी अपने साथियों के साथ भाग गया।

इसके आगे की बाते अकबरनामा में से ली गई है।

जब हमारी शाही सेना जो बनास नदी को पार कर 5-6 कोस तक भाग निकली थी। 

इस तबाही के समय मिहत्तर खान( मुग़ल सेना का उच्च पदाधिकारी) अपनी सहायक सेना सहित चंदावल से निकल आया और उसने ढोल बजवाया और हल्ला मचा कर फौज को एकत्र होने के लिए कहा और जोर से चिल्लाकर कहा की बादशाह अकबर खुद युद्ध भूमि में आ रहे है।

उसकी इस कार्रवाई से भागती हुई सेना में आशा का संचार हुआ जिससे उसके पैर टिक गए यानी मुगल सेना फिर से लड़ने को तैयार हो गई।

इसके आगे बदायुनी लिखता है कि :-

मानसिंह के वे मुगल सैनिक जो हरावल दस्ते के बाई(Left) ओर थे, डर कर भाग गए जिससे आसिफ खान को भी भागना पड़ा और उन्होंने दाई (Right) ओर के सैयदो की शरण ली।

यदि इस अवसर पर सैयद लोग न टिके रहते तो हरावल दस्ते के भागे हुए सैनिकों ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी थी कि बदनामी के साथ हमारी हार होती। 

यह सभी बातें अकबर के दरबार में काम करने वाले अधिकारी बदायूनी ने ही लिखी है। इससे भी आप हल्दीघाटी युद्ध के परिणाम का कुछ हद तक अंदाज़ा लगा सकते है।


haldighati battle field


हल्दीघाटी का युद्ध कौन जीता

Who won the battle of Haldighati


अभी तक हल्दीघाटी युद्ध को अनिर्णायक बताया जाता रहा है, लेकिन असल में इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की थी।

इतिहास के कुछ प्रामाणिक स्त्रोतो से यह पता चलता है कि हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुग़ल सेना गोगुंदा में आकर रूकी थी जो अभी उदयपुर जिले में आता है।

और यहां मुग़ल सेना ने चारों ओर गहरी खाईया खोद ली थी और चारों तरफ दीवारें भी बना ली थी क्योंकि मुग़ल सेना को महाराणा प्रताप की सेना के द्वारा रात में फिर से हमले का डर था। 

इस बात से आप अंदाज़ा लगा सकते है कि मुग़ल सेना में महाराणा प्रताप की सेना का कैसा भय था। इसके अतिरिक्त मुगल सेना को भीलो ने भी परेशान कर दिया था ।

युद्ध के बाद जब मुग़ल सेना गोगुंदा में रूकी हुई थी तब मुग़ल सेना के पास खाने के लिए कुछ बचा ही नहीं था।

हल्दीघाटी युद्ध जून में हुआ था जो कि गर्मी का मौसम रहता है, इस समय पेड़ो पर लगी कच्ची कैरियो को खाकर मुग़ल सैनिक काम चलाते थे।

इसके अलावा मुग़ल सेना अपने घोड़ों को काटकर ही खाने को मजबूर हो गई थी क्योंकी मुग़ल सैनिक जब भी खाने की तलाश में बाहर जाते थे उन पर महाराणा प्रताप की सेना और भील आक्रमण कर देते थे और वो मारे जाते थे।

इन सब परिस्थितियों को देखकर कुछ दिनों बाद अकबर ने मुग़ल सेना को गोगुंदा से वापस बुला लिया।मुग़ल सेना के वापस लौटने के बाद कुछ समय अकबर, मान सिंह से नाराज़ भी रहा था।

किसी जीत हुई सेना की ऐसी स्थिति तो कभी नहीं होती है।

इसके अतिरिक्त एक ठोस साक्ष्य भी आपके सामने प्रस्तुत करना चाहूंगा।

महाराणा प्रताप ने युद्ध के बाद हल्दीघाटी क्षेत्र के आस-पास आने वाले गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे तथा इन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर भी थे। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और अनुभवी इतिहासकार डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा ने इसके प्रमाण विश्वविद्यालय में जमा भी करवाए है।

महाराणा प्रताप के समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था। इसका अर्थ यही हुआ कि महाराणा प्रताप युद्ध के बाद भी राजा ही थे।

इसके अतिरिक्त डॉ.शर्मा कहते है कि अगर मुगल सेना हल्दीघाटी के युद्ध में विजयी होती तो, तो अकबर अपने सबसे बड़े विरोधी महाराणा प्रताप को हराने वालों को कुछ ना कुछ पुरस्कार जरूर देता या फिर किसी को आश्रित शासक ज़रूर बनाता पर इस तरह का कोई भी प्रमाण इतिहास में मौजूद नहीं है।

और तो और अकबर ने हल्दीघाटी युद्ध के बाद मान सिंह और मुग़ल सेना के अधिकारी आसिफ खान के मुग़ल दरबार में आने पर पाबंदी भी लगा दी थी।

इस तरह इतिहास के सभी प्रमाणों को सामने रखते हुए यह बात तय है कि हल्दीघाटी युद्ध में महान योद्धा महाराणा प्रताप की ही जीत हुई थी।

हल्दीघाटी युद्ध के संबंध में बहुत सी गलत जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध है इसलिए अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इसे नीचे दिए गए शेयर के ऑप्शन से जरूर शेयर करिएगा।

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