राणा कुम्भा का इतिहास । राणा कुम्भा की कहानी
(Rana kumbha in Hindi) चौदहवीं सदी के प्रारंभ में मेवाड़ पर राणा लाखा का शासन हुआ करता था, जिनका विवाह मारवाड़ की राठौड़ रानी हंसाबाई से हुआ। इस विवाह के कुछ समय पश्चात ही राणा लाखा की मृत्यु हो गई। राणा लाखा और हंसाबाई के पुत्र का नाम राणा मोकल था।
पिता की मृत्यु के बाद मेवाड़ की राजगद्दी पर राणा मोकल का औपचारिक रूप से राजतिलक कर दिया गया।
राणा मोकल की कम आयु होने के कारण राणा मोकल की मां हंसाबाई ने मारवाड़ से अपने भाई रणमल राठौड़ को मेवाड़ का राजकाज संभालने के लिए बुलवाया।
अपनी बहन का समाचार पाकर भाई रणमल अपने कुछ राठौड़ सरदारों के साथ मारवाड़ से मेवाड़ पहुंच गए। रणमल ने मेवाड़ पहुंचते ही मेवाड़ के पुराने सिसौदिया सरदारों को हटा कर उनकी जगह राठौड़ सरदारों को नियुक्त करना शुरू कर दिया।
सन 1428 में महाराणा मोकल ने नागौर पर आक्रमण किया। इस समय नागौर का शासक का फिरोज खान था। जब राणा मोकल ने नागौर पर आक्रमण किया तो फिरोज खान की सहायता के लिए गुजरात की सेना भी पहुंच गई। इस समय गुजरात का शासक अहमद शाह था।
इस युद्ध में राणा मोकल ने गुजरात और नागौर की संयुक्त सेना को पराजित किया। इस युद्ध को रामपुरा के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
सन 1433 में गुजरात के शासक अहमद शाह ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए गुजरात से मेवाड़ की ओर चढ़ाई शुरू कर दी।
इसके बाद राणा मोकल भी अहमद शाह का सामना करने जीलवाडा नामक स्थान पर पहुंच गए। जीलवाडा वर्तमान में दक्षिणी मेवाड़ का एक हिस्सा है।
परंतु जीलवाडा पहुंचने पर चाचा और मेरा ने महपा पंवार के साथ मिलकर षडयंत्र पूर्वक राणा मोकल की हत्या कर दी।
दरअसल राणा मोकल के दादा महाराणा क्षेत्र सिंह या महाराणा खेता को एक दासी से प्रेम हो गया था जो कि खातिन जाति(लकड़ी का काम करने वाले) की थी। चाचा और मेरा इसी दासी के पुत्र थे।
कहने को तो चाचा और मेरा मेवाड़ के महाराणा के पुत्र थे परन्तु एक दासी पुत्र होने के कारण उन्हें पर्याप्त सम्मान नहीं मिल पाता था। इसी कारण बचपन से दोनों के मन में अपने साथ होने वाले व्यवहार के प्रति बहुत गुस्सा था।
जब महाराणा मोकल अहमद शाह से युद्ध करने जीलवाड़ा नामक स्थान पर पहुंचे तो उन्हें अपना बदला लेने के लिए यही सही समय लगा।
इस प्रकार षड्यंत्रपूर्वक रात के समय चाचा और मेरा ने मिलकर महाराणा मोकल की हत्या कर दी।
राणा कुम्भा का राजतिलक
जब महाराणा मोकल की हत्या की गई उस समय महाराणा मोकल के पुत्र कुम्भा जीलवाड़ा में ही किसी दूसरे कैंप में मौजूद थे परंतु सिसोदिया सरदार उन्हें बचाने में सफल रहे और उन्हें जीलवाड़ा से सुरक्षित रूप से चित्तौड़गढ़ के दुर्ग में ले आए और यहीं पर 10 वर्ष की उम्र में उनका सन 1433 में राज्याभिषेक किया गया।
मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठने के बाद राणा कुम्भा ने चितौड़गढ़ दुर्ग के अंदर कुम्भा महल (kumbha palace) का निर्माण आरंभ करवाया।
राणा कुंभा पैलेस एक ऐतिहासिक धरोहर है जहाँ महाराणा कुम्भा ने अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया।
यह पैलेस राजपूत वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है और चित्तौड़गढ़ दुर्ग को देखने आने वाले पर्यटकों के बीच प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजपूतों की वीरता और मुगल आक्रमणकारियों की बर्बरता का साक्षी रहा है। इसी दुर्ग में रानी पद्मिनी ने मुग़ल आक्रांताओं से बचने के लिए वीरांगनाओ के साथ जौहर किया था। राणा कुम्भा महल के पास ही भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है।
राणा कुम्भा की शौर्य गाथा/ राणा कुम्भा के विजय अभियान
हिन्दू सुल्तान और राजपूताने के बाहुबली के नाम से प्रसिद्ध राणा कुंभा मात्र 10 वर्ष की आयु मेवाड़ की राज गद्दी पर विराजमान हुए। महाराणा कुंभा ने अपने पिता के हत्यारों चाचा और मेरा की हत्या करके अपना बदला लिया।
मेवाड़ पर कब्जा करने की नियत रखने वाले रणमल राठौड़ को रास्ते से हटाया।
बाद में महाराणा कुंभा की दादी और रणमल राठौड़ के पुत्र राव जोधा(इन्होंने ही 1459 में जोधपुर नगर की नींव रखी थी) की बुआ हंसाबाई ने महाराणा कुंभा और राव जोधा के बीच में संधि करवाई और मारवाड़ और मेवाड़ की सीमा का निर्धारण करवाया।इस संधि को आवल बावल की संधि भी कहा जाता है।
अपने पिता के हत्यारों को संरक्षण देने वाले मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को युद्ध में परास्त करके उसे 6 महीने में कैद में रखा। बाद में महमूद खिलजी के द्वारा हर्जाना भरने पर उस कैद से रिहा कर दिया गया।
राणा कुम्भा ने कुतुबुद्दीन शाह और महमूद खिलजी के संयुक्त आक्रमण को बुरी तरह विफल किया।
नागौर के शासक शम्स खान को संधि उल्लंघन पर ऐसा दंड दिया कि पूरे नागौर के किले को ही धूल में मिला दिया।
राणा कुम्भा और रणमल के मध्य द्वंद्व की कहानी
राणा कुंभा ने जब देखा कि रणमल राठौड़, मेवाड़ में अपना प्रभाव बढाने लगा है और उसने सिसोदिया सरदारों की जगह मारवाड़ के राठौड सरदारों को ऊंचे ऊंचे पदों पर नियुक्त कर दिया है तो राणा कुंभा और सिसोदिया सरदारों को षड्यंत्र का आभास होने लगा।
रणमल राठौड, राणा कुंभा की दादी हंसाबाई का भाई था इसलिए राणा कुंभा उसे कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे।
परंतु राणा कुम्भा ने यह तय कर लिया था कि रणमल राठौड को मेवाड़ से बाहर करना ही है। इसके बाद राणा ने तुरंत आदेश जारी करके मेवाड़ के पुराने सिसौदिया सरदारों को पुनः उनके पदों पर नियुक्त कर दिया।
महाराणा कुंभा ने रणमल के विरुद्ध पूरा चक्रव्यूह तैयार करके सिसोदिया सरदारों के साथ मिलकर रणमल राठौड की हत्या करवा दी।
रणमल की मृत्यु के बाद उनका पुत्र राव जोधा अपनी जान बचाने के लिए मारवाड़ की तरफ भागे। महाराणा कुम्भा ने अपनी सेना को राव जोधा का पीछा करने का लिए आदेश दिया ताकि वह फिर से राठौड़ सरदारों को एकत्रित करके मेवाड़ पर हमला न कर सके।
महाराणा कुंभा की सेना ने मारवाड़ तक राव जोधा का पीछा किया तथा कुछ समय पश्चात मेवाड़ की सेना ने मंडोर पर अपना अधिकार कर लिया।
अब संपूर्ण मारवाड़ कुम्भा के क्षेत्राधिकार के अंदर आ गया था।
परंतु कुछ साल पश्चात बाद राणा कुंभा की दादी हनसा बाई ने राणा कुंभा और राव जोधा के बीच मित्रता करवाकर मारवाड़ और मेवाड़ की सीमा निर्धारित करवा दी और मारवाड़ राज्य राव जोधा को सौंप दिया।
राणा कुम्भा द्वारा पिता की मौत का बदला
सन् 1433 में मेवाड़ की राज गद्दी पर बैठते ही राणा कुंभा ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने का प्रण ले लिया था।
और इसी प्रण के साथ महाराणा कुंभा अपने चाचा चुंडा सिसोदिया और रणमल राठौड़ को साथ लेकर अपने पिता की हत्या करने वाले चाचा व मेरा पर आक्रमण करने निकल पड़े।
उत्तर की पहाड़ियों पर पहुंचकर राणा कुंभा ने भीषण हमला करते हुए चाचा व मेरा की हत्या कर दी। चाचा मेरा का एक सहयोगी महपा पवार अपनी जान बचाकर मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी के पास पहुंच गया और उसके यहां शरण ले ली।
महाराणा कुंभा ने तुरंत ही मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को एक पत्र लिखा और महमूद खिलजी को महपा पवार को उन्हें तुरंत सौपने को कहा।
इसके जवाब में महमूद खिलजी ने महाराणा कुंभा को कहा कि मैं मेवाड़ का सेवक नहीं हूं। अगर हिम्मत है तो मालवा पर आक्रमण करके इसे ले जाओ।
राणा कुम्भा और खिलजी के मध्य युद्ध
खिलजी के इस प्रकार के विपरित जवाब के बाद सारंगपुर के मैदानों में राणा कुम्भा और महमूद खिलजी के मध्य भीषण युद्ध हुआ।
महमूद खिलजी को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि महाराणा कुम्भा इस बात को इतनी गंभीरता से लेंगे। इस युद्ध में महमूद खिलजी की सेना पर भीषण प्रहार किए गए। मात्र 6 घंटों में मालवा की संपूर्ण सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया।
सुल्तान की हार को देख कर देखकर महपा पवार ने महाराणा कुंभा से क्षमा मांगते हुए अपनी पगड़ी उतारकर राणा कुंभा के चरणों में रख दी और क्षमा याचना करने लगा। महाराणा कुंभा ने बड़ा दिल दिखाते हुए उसे माफ कर दिया पर सुल्तान महमूद खिलजी को कैद करके चित्तौड़ ले आए जहां उसे 6 महीने की कैद में रखा गया। बाद में खिलजी से हर्जाना लेकर उसे छोड़ दिया गया।
महाराणा कुम्भा ने इस युद्ध में गागरोन, मंदसौर और सारंगपुर के किले पर विजय प्राप्त की।
मालवा विजयी के बाद राणा कुंभा ने चित्तौड़ में भव्य विजय स्तंभ ( Vijay stambha or Tower of victory)का निर्माण करवाया।
राणा कुम्भा का दिग्विजय अभियान
राणा कुम्भा ने अपने दिग्विजय अभियान के अन्तर्गत अपनी संपूर्ण सेना और सरदारों को तैयार करके बूंदी राज्य को घेर लिया जहां जहाजपुर के मैदानों में महाराणा कुंभा और बूंदी के शासक की सेनाओं के मध्य भीषण संग्राम हुआ।
परंतु राणा कुम्भा की विशाल सेना को देखकर बुंदी के हाड़ा शासक ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस विजय के बाद बिजोलिया, मांडलगढ़ ,जहाजपुर और पूर्व के पठारो पर राणा कुंभा का अधिकार हो गया।
इतने विशाल भू भाग को जीतकर राणा कुंभा ने अपने सेनापति नाहर सिंह डोडिया के नेतृत्व में एक भारी सैनिक टुकड़ी सिरोही पर अधिकार करने के लिए भेजी क्योंकि सिरोही के शासक राजा शेषमल ने राणा मोकल की मृत्यु के समय मेवाड़ के कई किलो को अपने अधिकार में कर लिया था।
नाहर सिंह डोडिया ने आबू, सिरोही और दक्षिण के बड़े भाग को जीत लिया उधर राणा कुंभा ने डूंगरपुर,रणथंबोर को अपने अधिकार में कर लिया। राणा कुंभा ने उन्हीं राज्यों पर आक्रमण करके हुकूमत कायम की जो राज्य कभी इनके परदादा राणा हमीर सिंह सिसोदिया के अधिकार क्षेत्र में आते थे।
राणा कुम्भा और खिलजी के मध्य एक बार फिर से टकराव
राणा कुंभा जब दिग्विजय अभियान में व्यस्त थे उस समय मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी ने एक बार फिर मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। महमूद खिलजी राणा कुंभा से परेशान हो चुका था वह जिस किसी भी किले पर अधिकार करता राणा कुंभा तुरंत उसको खदेड़ देते।
महमूद ने गुजरात के सुल्तान को पत्र लिखा कि
"मेवाड़ की सत्ता पर ऐसा राणा बैठा है जिसने हमारे साम्राज्य को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया अगर जल्दी उसको काबू नहीं किया गया तो यह एक दिन मालवा को जीतकर संपूर्ण साम्राज्य को तहस-नहस कर डालेगा।"
गुजरात के सुल्तान ने मालवा शासक महमूद खिलजी के पत्र को स्वीकार किया और दोनों ने तय किया कि हम दो दिशाओं से मेवाड़ को घेरकर हमला करेंगे और मेवाड़ पर अपना अधिकार कायम करेंगे।
इस संधि को चंपानेर की संधि (Champaner treaty) के नाम से जाना जाता है। इस संधि के तहत सुल्तान कुतुबुद्दीन शाह ने अपनी विशाल सेना लेकर आबू को जीतने के बाद हमला करने के लिए आगे बढ़ा।
इस समय नागौर और सिरोही की सेना भी उसके साथ थी।
कुतुब शाह द्वारा आबू जीतने के बाद आबू का सरदार भागता हुआ मेवाड़ी दरबार में पहुंचा और राणा कुंभा से कहा कि गुजरात की तरफ से आई विशाल सेना ने हमारे किले से केसरी ध्वज हटा दिया ऐसे ही समाचार गागरोन की तरफ से भी आए।
इस प्रकार कुतुबुद्दीन शाह ने अपनी विशाल सेना के साथ मेवाड़ पर आक्रमण किया। महाराणा कुंभा की सेना के साथ कुतुबुद्दीन शाह का भीषण युद्ध हुआ परंतु महाराणा कुंभा से वह बुरी तरह पराजित हुआ और पुनः गुजरात लौट गया।
दूसरी तरफ महमूद खिलजी गागरोन की तरफ से मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए निकला। इस युद्ध को बदनौर के युद्ध के नाम से जाता है जो कि वर्तमान में राजस्थान के भीलवाड़ा क्षेत्र में आता है।
महमूद खिलजी के इस प्रयास में भी उसे असफलता मिली और वह पराजित होकर पुनः मालवा लौट गया। महाराणा कुंभा की इस जीत का उल्लेख कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति और रसिकप्रिया की टीका में मिलता है। महाराणा कुंभा ने अपनी विजय के पश्चात बदनौर में कुशाल माता मंदिर का निर्माण भी करवाया।
महाराणा कुम्भा की सेना ने इस बार महमूद खिलजी के बहुत से सरदारों को कैद कर लिया।
नागौर के शासक शम्स खान को संधि उल्लंघन की सजा देना और महाराणा कुम्भा की कुछ अन्य उपलब्धियां
महाराणा कुंभा ने नागौर के शासक शम्स खान के द्वारा एक संधि का उल्लंघन करने पर नागौर पर ऐसा भीषण आक्रमण किया कि नागौर के किले को पूरी तरह मिट्टी में मिला दिया इसके साथ साथ हजारों हाथियों और घोड़ों को नागौर से मेवाड़ ले आए।
अपने काल के महा योद्धा राणा कुंभा ने नागौर, अजमेर ,बूंदी, मालवा ,डूंगरपुर आमेर, आबू तथा रणथंबोर पर अपना अधिकार कायम किया।
राणा कुंभा वेद पुराण उपनिषद के बहुत बड़े ज्ञानी थे। वह संगीत, नाटक और साहित्यों की सभाओं का आयोजन करवाते रहते थे।
महाराणा कुंभा ने अपने जीवन काल में अनेकों ग्रंथ लिखे। इनके शासन काल में मेवाड़ का विस्तार अपने चरम पर था। महाराणा कुंभा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। इन्होंने कई शिव मंदिरों का निर्माण भी करवाया। महाराणा कुंभा ने मेवाड रियासत के 84 किलो में से 32 किलो का निर्माण करवाया था।
राणा कुम्भा के द्वारा प्राप्त उपाधिया
Titles received by Rana Kumbha
राणा कुंभा को अपने जीवन काल में कई सारी उपाधिया मिली।
अहमद शाह जो कि गुजरात का शासक था और मुहम्मद शाह जो दिल्ली का शासक था, इन दोनों ने खिलजी के खिलाफ अपनी लड़ाई में राणा कुंभा का साथ दिया।
इन दोनों शासकों ने राणा कुम्भा को Hindu Suratrana (Hindu sultan) की उपाधि दी।
राणा कुम्भा पहले योद्धा थे जिन्हें किसी मुस्लिम सुल्तान ने इस तरह की उपाधि दी।
उन्होंने शरण में आए हुए का हमेशा सत्कार किया राणा कुंभा ने मेवाड़ में 32 दुर्गों का निर्माण करवाया।
जिसमें कुंभलगढ़ इतना शक्तिशाली दुर्ग है जिस की दीवार चीन की दीवार के बाद सबसे लंबी लंबी और मोटी दीवार है।
राणा ने कुंभलगढ़ दुर्ग में ही कटार गढ़ का निर्माण करवाया जहां राणा कुंभा रहते थे और यही भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते थे।
राणा कुम्भा की मृत्यु
Death of Rana kumbha
इतिहासकारो और चारण कवि के अनुसार जब राणा कुंभा भगवान शिव की पूजा कर रहे थे तब उनके पुत्र उदा सिंह ने राणा कुंभा की गर्दन काट दी जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई।
jai mewad
ReplyDeletejai rajputana