120 साल पहले चीन के बॉक्सर विद्रोह में राजपूत सैनिकों की शौर्य गाथा । Boxer Rebellion China in hindi

120 साल पहले चीन के बॉक्सर विद्रोह में राजपूत सैनिकों की शौर्य गाथा । Boxer Rebellion China in hindi

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बॉक्सर विद्रोह चीन(चीन का बॉक्सर विद्रोह) । Boxer Rebellion of China in Hindi


 बॉक्सर विद्रोह क्या था

(What was Boxer Rebellion)


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19 वीं शताब्दी के अंत तक, चीन और यूरोपियन देशों के मध्य अविश्वास और तनाव बहुत अधिक बढ़ गया था, और स्थिति किसी भी वक्त खराब हो सकती थी।

और यह स्थिति किंग राजवंश (Qing Dynasty) और इंपीरियल चीन के लिए मुसीबत बनना तय था। 1880 और 1890 के दशक के दौरान चीन में अलग अलग समुदायों के मध्य तनाव बढ़ रहा था, विशेष रूप से क्रिश्चियन समुदायों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई।

1894 में चीन-जापान युद्ध में चीन की बुरी तरह पराजय हुई। इस हार के कारण चीन को मज़बूरी में 1895 में "Unequal treaties" पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा और Fengu और Liaodong Peninsula जैसी महत्वपूर्ण जगह जापान को देना पड़ी।

उस समय जापान से विश्व के अधिकतर देश नाराज थे और चीन के इस तरह के आत्मसमर्पण के बाद स्वाभाविक रूप से पश्चिमी देशों में नाराजगी बढ़नी ही थी। 

जापान के साथ युद्ध के कारण चीन की कृषि पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ा और मंदी और बेरोज़गारी की समस्या ने चीन की अंदरूनी स्थिति को और खराब कर दिया।

चीन में मौजूद धार्मिक संगठनों ने बक्सर के विद्रोह में एक खास भूमिका निभाई थी। 

19 वीं सदी के अंतिम दशक के दौरान, उत्तरी चीन में कई गुप्त संगठनों का उदय हुआ। इन संगठनों ने बड़ी मात्रा में बेरोजगार नौजवानों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।

boxer rebellion
Boxer Rebellions


धीरेे धीरे प्रशिक्षित युवकों को West में Boxer के नाम से जाना जाने लगा। इनका स्लोगन था "Support the Qing, destroy the foreigners."

विदेशी नेताओं ने इस Boxer rebellion group को दबाने के लिए चीन की Qing Dynasty पर दबाव डाला और 1899 की गर्मियों में शुरुआती झड़पें हुईं। जब शेडोंग के गवर्नर ने सन् 1900 में बॉक्सरों को प्रांत से बाहर निकाल दिया, तो वे उत्तर की ओर चले गए और बीजिंग के पास पहुंचने के बाद ईसाई समुदायों पर हमला करना शुरू कर दिया।

कुछ महीनों में ये अधिक संगठित हो गए और अत्यधिक नुकसान पहुंचाने लगे। बाद में, दंगाइयों ने बीजिंग रेस कोर्स को भी जला दिया, और इसके अंदर जिन्होंने भी शरण (Refuge) ली थी वो सभी मारेे गए।

हालात इतने बिगड़ गए कि कुछ दिनों बाद जापानी चांसलर की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद आठ अलग-अलग देशों के 50,000 से अधिक सैनिकों को  रूस, ब्रिटेन (जिनमें 23000 भारतीय राजपूत सैनिक शामिल थे), फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रिया -हंगरी से बुलाया गया और 10 जुलाई के आसपास सभी सैनिक चीन में पहुंचे।

राजपूत सैनिकों कि शौर्य गाथा 

Heroic saga of rajput soldiers


इस खूनी विद्रोह को दबाने के लिए बिकानेर गंगा रिसाला, जोधपुर लांसर्स और राजपूत सैनिकों की कुछ अन्य यूनिट्स चीन के लिए रवाना हुई और इस विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

जोधपुर लांसर्स का नेतृत्व सर प्रताप सिंह कर रहे थे जो इदार के थे। जबकि बिकानेर रिसाला का नेतृत्व बिकानेर के महाराजा गंगा सिंह कर रहे थे। 

गंगा सिंह 1 सितंबर, 1900 को चीन के लिए निकले और 14 सितंबर को हॉन्ग कॉन्ग पहुंचे।

महाराजा गंगा सिंह को टिंस्टिन (Tienstin) में विद्रोह को शांत करने की ज़िम्मेदारी दी गई। इस शहर में बहुत खून बह चुका था और हजारों लोगो की जान चली गई थी। यहां के Boxer Rebellion पर काबू पाना आसान नहीं था। पर महाराज गंगा सिंह को ऐसी ही चुनौती पसंद थी।

 

      Commanding officer Maharaja Ganga Singh's animated video 

Credit - MyHeritage app

सबसे पहले उन्होंने राजपूत सैनिकों की यूनिट्स को आदेश दिया कि पहले सार्वजनिक स्थानों को कब्जे से छुड़ाने की जरूरत है जिस पर बॉक्सर विद्रोहियों ने कब्ज़ा कर रखा था। महाराजा गंगा सिंह बहुत बुद्धिमान थे तो सबसे पहले उनकी कोशिश यही थी कि कम से कम जान और माल का नुकसान हो। 

इन्होंने बहुत चतुराई से Boxer Rebellions ग्रुप में से कुछ को अपनी तरफ कर लिया और यह भ्रम फैला दिया कि बहुत जल्द ही Tienstin में western countries की बहुत बड़ी फौज आने वाली है जिनकी संख्या लाखों में हो सकती है। जैसे ही ये बात Rebellion ग्रुप में फैल गई और भय के कारण बहुत से Rebellions ने सरेंडर कर दिया। 

इसकेे बाद जो विद्रोही नहीं माने उन पर बल प्रयोग करना ही पड़ा। इस बल प्रयोग में कितने विद्रोही मारे गए इसका आधिकारिक आंकड़ा चीन ने कभी नहीं जारी किया। 

पर राजपूत सैनिकों के शौर्य के आगे Boxer Rebellions की न चल पाई। और 3-4 दिनों के अंदर ही Tienstin शहर में शांति स्थापित कर दी गई जो कि इससे पहले पश्चिमी देशों की सेना कई महीनों में भी नहीं कर पाई थी।

इसके बाद राजपूत सैनिकों ने पॉन्टिंगफु पर कब्जा किया और पिटांग पर जीत हासिल की। pitang में राजपूत सैनिकों का नेतृत्व सर प्रताप सिंह कर रहे थे।

पिटांग में बहुत अधिक मात्रा western forces को क्षति हुई थी क्योंकी बॉक्सर विद्रोहियों की सप्लाई लाइन बहुत मजबूत थी। यहां पर सर प्रताप के निर्देश पर राजपूत यूनिट्स ने सबसे पहले विद्रोहियों की सप्लाई लाइन को काट दिया जिससे इन्हें बाहर से कोई हथियार ना मिल सके।

इसके बाद पश्चिमी देशों की सेनाओं ने पिटांग में आपरेशन चलाया और बहुत से विद्रोहियों को मार दिया। बॉक्सर विद्रोहियों की सप्लाई लाइन काट दिए जाने से कुछ ही दिनों में pitang विद्रोहियों से मुक्त हो गया। 

चीन के बॉक्सर विद्रोह में राजपूत सैनिकों के मानवीय मूल्य

(Human values of Rajput Soldiers in Boxer Rebellion in China)


जब पश्चिमी देशों की सेनाओं का बॉक्सर विद्रोहियों के साथ संघर्ष चल रहा था तो इस दौरान सामान्य चीनी नागरिकों पर होने वाले अत्याचारों का राजस्थानी सैनिको ने पुरजोर विरोध किया।

सर प्रताप सिंह के प्रमुख अधिकारी अमर सिंह राठौड़ की पर्सनल डायरी से यह पता चलता है कि चीनी नागरिकों के प्रति रूस की सेना का व्यवहार बहुत ही बुरा था। अमर सिंह राठौड ने अपनी पर्सनल डायरी में चीनी महिलाओं के शोषण की बात भी बताई है।


Commanding officer to tackle boxer rebellion
Rare picture of Commanding officers to tackle Boxer Rebellion

 कैसे खत्म हुआ बॉक्स विद्रोह? 

How did the boxer rebellion end?


23 हजार वीर राजपूत सैनिकों ने बॉक्सर विद्रोह को खत्म करने में अपनी  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

बॉक्सरों की हार के बाद विद्रोह खत्म हो गया और 7 सितंबर, 1901 को बॉक्स प्रॉटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए। समझौते के मुताबिक मंचू गवर्नमेंट को नुकसान की भरपाई के लिए 33 करोड़ डॉलर का जुर्माना अदा करना पड़ा।

समझौते के कुछ दिनों बाद चीनियों ने कुछ विद्रोही नेताओं को मौत की सजा सुना दी। इस विद्रोह के कारण किंग राजवंश कमजोर हो गया और एक दशक के बाद उसका पूरी तरह से अंत हो गया।
इस तरह राजपूत सैनिकों ने अपनी वीरता का दुनिया के सामने अदभुत प्रदर्शन  किया।


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