संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के विवाह के पीछे की रोचक कहानी (संयोगिता स्वयंवर) (The unheard story behind the marriage of Prithviraj Chouhan and Sanyogita-sanyogita swayamvar in Hindi)
संयोगिता परिचय/संयोगिता कौन थी
(Who was Sanyogita)
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संयोगिता चौहान (Sanyogita Chauhan) पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) की पत्नी थी। तथा पृथ्वीराज के साथ विवाह कर के संयोगिता, पृथ्वीराज की अर्धांगिनी बनी।संयोगिता को कान्तिमती,तिलोत्तमा के नाम से भी जाना जाता है।
संयोगिता के पिता कन्नौज के राजा जयचंद थे।भारत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में संयोगिता के अपहरण को भी गिना जाता है। पृथ्वीराज की तेरह रानियों में से संयोगिता अत्यधिक रूपवान थी।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के प्रेम के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे पर शायद ही आपने दोनो के विवाह के पीछे की पूरी कहानी कभी पढ़ी होगी। इस पोस्ट में आज आप यही जानेंगे।
संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान को क्यों पसंद किया
(Why Sanyogita liked Prithviraj Chauhan)
पृथ्वीराज रासो में 12 वीं सदी के राजा, पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर एक महाकाव्य है। इसे पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि, चंद बरदाई ने लिखा था। पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता के बीच प्रेम की कहानी, साहस की एक आकर्षक गाथा है।
पृथ्वीराज चौहान, चौहान वंश के राजा थे, जिनका शासन वर्तमान हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था।
पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिमो द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप की विजय से पहले दिल्ली पर शासन करने वाले अंतिम राजपूत राजा के रूप में भी जाना जाता है।
तराइन के पहले युद्ध में घुरिद साम्राज्य (वर्तमान अफगानिस्तान) के सुल्तान मुहम्मद गोरी को पराजित करने के बाद, पृथ्वीराज चौहान की ख्याति चारो ओर सुने जाने लगी और वो नई बुलंदियों पर पहुंच गये।
मुहम्मद गौरी ने दिल्ली पर 17 बार हमला किया और 16 बार पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना ने उसे बुरी तरह पराजित किया।
जल्द ही, पृथ्वीराज की वीरता की कहानियां कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता के कानों में पहुंची और इसी कारण संयोगिता, पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करने लगी।
उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के अभियानो बारे में बहुत सुना था और इस कारण संयोगिता का प्रेम पृथ्वीराज चौहान के लिए और बढ़ गया।
लेकिन इससे पहले कि राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान के बीच प्यार का रिश्ता बन पाता, जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच संबंध कुछ कारणों से तनावपूर्ण हो गए ।
जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच संबंध /जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच तनाव का कारण
(Reason of conflict between Prithviraj Chauhan and Jaichand/Jaichand and Prithviraj Chauhan relation Hindi)
जयचंद अन्य राजपूत राजाओं पर अपना वर्चस्व जमाना चाहते थे और इसलिए उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया। हालांकि, पृथ्वीराज ने जयचंद के वर्चस्व को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और इससे उनकी दुश्मनी की शुरुआत हुई।
लेकिन जब पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद को सर्वोच्च राजा के रूप में स्वीकार करने से इनकार किया, तब तक जयचंद की पुत्री संयोगिता पृथ्वीराज चौहान से अत्यधिक प्रेम करने लगी थी।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता ने सबसे पहले एक दूसरे को किस प्रकार देखा
(How Sanyogita and Prithviraj Chauhan saw each other first time)
किंवदंती के अनुसार पृथ्वीराज के दरबार में पन्ना रे नाम के चित्रकार थे जिन्होंने कन्नौज का दौरा किया तथा इसी दौरान पन्ना रे ने राजा जयचंद और राजकुमारी संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर दिखाई थी।
इसी चित्रकार ने वापस लौटने पर संयोगिता के चित्र को चित्रित किया और उसे पृथ्वीराज चौहान को दिखाया। कहने की जरूरत नहीं है कि पृथ्वीराज चौहान भी संयोगिता की खूबसूरती से विस्मित हो गए।
जयचंद द्वारा संयोगिता के लिए स्वयंवर का आयोजन
(Swayamvar organized by Jaichand for Sanyogita)
इस समय, जयचंद ने अपनी बेटी के लिए एक स्वयंवर की व्यवस्था करने का फैसला किया। जयचंद ने पृथ्वीराज को छोड़कर सभी राजाओं को निमंत्रण भेजा।
पृथ्वीराज़ चौहान का और अधिक अपमान करने के लिए, उन्होंने पृथ्वीराज की एक मूर्ति बनवाई और इसे द्वार रक्षक के रूप में स्थापित किया। लेकिन संयोगिता ने पहले ही पृथ्वीराज चौहान को अपना दिल दे दिया था।
जब राजकुमारी संयोगिता को पता चला कि उन्हें स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया गया है, तो वह अंदर से टूट गई और पृथ्वीराज चौहान को एक पत्र लिखकर उनसे शादी करने की इच्छा व्यक्त की।
इसके लिए, पृथ्वीराज ने राजकुमारी संयोगिता से वादा किया कि वह स्वयंवर में जरूर आयेंगे।
संयोगिता स्वयंवर के दिन क्या हुआ
( What happened on Sanyogita Swayamvar day)
स्वयंवर के दिन, संयोगिता ने सभी राजाओं और राजकुमारों को पीछे छोड़ दिया, और प्रत्येक को अस्वीकार करते गई, और अंत में द्वार रक्षक के रूप में पृथ्वीराज चौहान की जो प्रतिमा जयचंद ने बनवाई थी उस प्रतिमा तक संयोगिता पहुंच गई।
उस समय, पृथ्वीराज़ चौहान, जो प्रतिमा के पीछे छुपे हुए थे, संयोगिता के पहुंचने पर तुरंत बाहर आये और जैसे ही पृथ्वीराज चौहान सामने आए वैसे ही संयोगिता ने उनके गले में वरमाला डाल दी।
पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद को खुलेआम चुनौती दी कि वह उन्हें अपनी पत्नी को लेने से रोक सकते है तो रोक कर दिखाए ।
इस दिन हजारों सैनिकों ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना जीवन लगा दिया कि पृथ्वीराज चौहान अपनी नवविवाहित पत्नी संयोगिता के साथ कन्नौज से सुरक्षित बाहर निकल जाए।
पृथ्वीराज चौहान के साथ जयचंद का प्रतिशोध
(Jaichand's Revenge with Prithviraj Chauhan)
इस घटना के कारण जयचंद को राजाओं और राजकुमारों की एक विशाल सभा के सामने अपमान का सामना करना पड़ा।इस घटना ने जयचंद को अत्यधिक क्रोधित कर दिया था।
जयचंद गुस्से से आग बबूला हो गए थे और इसी कारण पृथ्वीराज़ से इसका बदला लेना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने मुहम्मद गोरी के साथ एक गठबंधन बनाया, जिसे पृथ्वीराज चौहान ने पहले 16 बार हराया था।
मुहम्मद गौरी से गठबंधन करने के बाद जयचंद ने दिल्ली पर हमला करने के लिए गौरी की सेना को अपना समर्थन दिया था।
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